बच्चों , कबूतरों का समुह जब एकजुट होकर बहेलिये के जाल को साथ ले कर, कबूतरों के मुखिया राजा के मित्र चूहे, के पास पहुँचा तो चूहे ने अपने पैने दांतो से जाल काट दिया । इससे कबूतरों को एक बड़ी विपत्ति से छुटकारा मिल गया और सभी कबूतर चूहे को धन्यवाद देकर उड़ गये. यह कहानी आप सभी लोग जानते होगे और यह भी जानते होंगे कि एकता मे कितनी ताकत होती है। अच्छा मित्र उसे कहते हैं जो मुसीबत के समय भी सहायता करे । अब आगे की कहानी जो नारायण पंडित ने हितोपदेश मे कही थी वह हम संक्षेप मे आपको सुनाते हैं।
जिस समय मूषक राज चूहा जाल काट रहा था उसी समय उस पेड़ पर बैठा एक कौवा बड़े धैर्य के साथ वह सब देख रहा था। वह चूहे की मित्रनिष्ठा देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ। उसने निशच्य किया कि मूषक राज को मित्र बनाना चाहिये क्योंकि वह मित्रता के योग्य है। उस कौवे ने उस चूहे से मित्रता करने का निवेदन किया । इस पर चूहे ने कहा हमारी तुम्हारी दोस्ती कैसी? मैै ठहरा खाद्य और तुम ठहरे हमारे भक्षक ! अतः यदि मै तुमसे मित्रता कैसे कर सकता हूँ । मौका पाकर तुम मुझे मार कर खा जाओगे। इस बात पर कौवे ने पुनः आग्रह किया और विश्वास दिलाया कि वह सच्चे दिल से उससे मित्रता करना चाहता है, तब चूहा अपनी सुरक्षा पर नजर रखने की सोंच कर कौवे के मित्रता के प्रस्ताव को मान गया और वे दोनो मित्र बन गये। कुछ दिनो के बाद एक दिन कौवा चूहे से बोला कि इस स्थान पर खाने की चीजों की कमी आ गई है हम लोगों को यहाँ से दूर कहीं चले जाना चाहिये। पेड़ की ऊँची डाल पर बैठे कौवे ने दूंर तक नजर दौड़ाई तो उसे चारो तरफ अकाल पड़ने जैसा नजारा देखने को मिला । अतः दोनो बात करते दूर तक एक तलाब के पास तक निकल आये . उस तालाब के पास कछुऐ का घर था .
कछुआ कौवे का मित्र था इस प्रकार तीनो कौवा, कछुआ और चूहा आपस मे मित्र हो गये थे। एक दिन, एक हिरन , दौड़ता हुआ उस जंगल मे आया। उसको डरा हुआ देख कर इन तीनो मित्रों ने उसके मन से डर निकाल कर उसे निडर रहने का सुझाव दिया । उस हिरण ने बताया कि उसने शिकारियों को बातचीत करते सुना है कि इस देश के राजा अपने राज्य के बड़े मत्रिंयों के साथ इधर के क्षेत्र के दौरे पर आने वाले है । उनके खाने के लिये बढ़िया मांस के लिये शिकारी इस जंगल मे आयेगे इसी बात को सोच कर हिरन को भय लग रहा है. तीनो मित्रो ने उससे कहा कि तुम भी हमारे मित्र हो हम सब मिल कर समय आने पर कुछ व्यवस्था कर लेंगे. लेकन कछुआ डर गया वह बोला कि वन मे रहना खतरे से भरा है अतः मैं दूसरे वन मे चला जाता हूँ और उसके मित्रों ने सोचा वह अकेला रास्ते मे किसी मुसीबत मे न पढ़ जाये वे भी उसके पीछे चल दिये. दूसरे जंगल के तालाब तक वह कछुआ पहुँचा ही था कि एक शिकारी ने उसे पकड़ लिया. कछुआ के मित्र लोगो ने जब कछुए को फँसा हुआ देखा तब उसके शिकारी के जाल से बाहर निकाले की योजना बनाने लगे.
कौवे ने चूहे से कहा कि हम तीनो मेआप सबसे बुद्धिमान हैं आपही इसका कोई उपाय निकालिये. चूहे ने कछ देर सोचा फिर बोला ठीक है मैं जैसा कहता हूँ वैसा हम सब करें तब हम अपने मित्र को अवश्य छुड़ा लेगें. चूहे ने हिरन से कहा कि शिकारी से दूर परन्तु उसे दिखाई पड़ जाये इतनी दूर वह मृतक की तरह लेट जाने का ड्रामा करे कौवे भाई तुम उसकी आँख के पास बैठ जाओ . यह देखकर शिकारी जैसे ही मृग के माँस के लालच मे उसकी तरफ जायेगा मै कछुए के जालको काट दूंगा. उसका कहना माँन कर हिरन दूर झाड़ियों के पास एक मरे हुए हिरन की तरह लेट गया कौवा उसके आँख के पास बैठा तब शिकारी भी धोका खा कर हिरन की तरफ जाने लगा. तभीचूहे ने कछुए का जाल काट दिआ और कछुए ने तालाब मे छलांग लगा दी. छपाक की आवाज सुनकर कछुएको फिर पकड़॒ने के लिये जब शिकारी कछुए की तरफ बड़ा तब हिरन और कौआ भाग गये .
बच्चों , देखा सच्चा मित्र वही जो विपत्ति मे काम आये और एकता मे बहुत ताकत होती है वहीं बहेलिये ने भी शिक्षा पाई कि .
आधा छोड़ पूरे पर धावे तो आधी रहे न पूरी पावे।।
शरद कुमार श्रीवास्तव
बहुत बढ़िया कहानी। बच्चों को बहुत पसंद आई
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