हुई गुनगुनी भोर, शीत धरती पर आयी।
खुली सबेरे आँख, ठंड देखो मुस्कायी।।
सुंदर लगते मेघ, पंख पक्षी फैलाते।
करते सारे शोर, भोर जल्दी उठ जाते।।
लगी गुनगुनी भोर, धरा मोती बन जाती।
पौधे पत्ती फूल, खुशी से वह इठलाती।।
पुरवाई की शोर, सभी कानों में आती।
धीमी-धीमी ठंड, हमें छू कर है जाती।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें