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गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना : हंस और मूर्ख कछुआ




हंस और मूर्ख कछुआ

 (पंचतंत्र की कथाओं पर आधारित)

एक सरोवर पर  रहता था एक हंस का जोड़ा
रहता वहीं एक कछुवाा भी था बातूनी  थोड़ा
पड़ा अकाल भयंकर भैय्या सूखे ताल तलैया
कछुआ बोला हसों से छोड़ें सरोवर हम भैया

हंस बोले हम उड़ जाये पर तुम कैसे जाओगे
सूखे ताल मे बिना दाना पानी के मर जाओगे
भले हंस थे सूखे ताल मे कछुआ छोड़ न पाये
भाग दौड़कर जुगत लगानेे लकड़ी खोज लाये

दोनो हसों ने अपनी चोंच से पकड़ी थी लकड़ी
कहा कछुए को जोर से बीच मे पकडो लकड़ी
बात न करना तबतक मन्जिल जबतक न आए
समझदार तुम हो अब दादा तुम्हे कौन समझाऐ.

बीच राह मे कुछ बालकों ने की हसों की बड़ाई
कितना चतुर हंस का जोड़ा खूब जुगत लगाई
कछुआ लगा उनको यह अपनी चुगत बताने
जैसे ही मुँह खोला उसने गिरा वह चारों खाने



                                   शरद  कुमार  श्रीवास्तव 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढ़िया कहानी ।

    इस अंक मे प्रकाशित सभी लेख एवं कविता बहुत अच्छा लगा ।सभी रचनाकारो को बहुत बहुत बधाई ।साथ में कुशल संपादन के लिए श्री शरद कुमार श्रीवास्तव जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

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