ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

करनी व्यर्थ न जाई ✍🏻🌺✍🏻 अर्चना सिह जया का बालगीत

 



अच्छी करनी जो करें,


कभी बुरा न उस संग होए।


आओ सुनाऊं एक कहानी,


तन-मन पुलकित होए।


घने जंगल के बीच से,


गुज़र रहा था वह लकड़हारा।


तपती धूप में छांव तलाशता, 


सोचता था विश्राम कर लूं दोबारा।


देखा तभी जाल में फंसे कौए को,


बिछे जाल से झट उसे निकाला।


आजादी का बोध कराकर,


झूमता मस्त चला लकड़हारा।


आम के पेड़ के डाल पर जा बैठा,


पोटली से रोटी, फिर उसने निकाला।


तभी कौवे ने झट से लपक कर,


लकड़हारे की रोटी लेकर भागा।


रोटी की लपक झपक के चक्कर में,


धपाक ज़मीन पर गिर पड़ा वो बेचारा। 


मोच पैर में थी आई,





कमर पर भी चोट थी खाई।


गुस्से से वह लाल हो गया,


लकड़हारा फिर बहुत झल्लाया।


काक ने माफी मांगी यह कहकर,


"जो मैं रोटी ले कर न भागता,


डाल से लिपटा सांप फिर काटता।"


लकड़हारे को बात जब समझ आई,


धन्यवाद! कहकर रीत निभाई।


आधी-आधी रोटी मिलकर खाई,


दोनों ने अच्छी मित्रता की गांठ लगाई। 


इस कहानी से सीख लो भाई,


"अच्छी करनी कहीं व्यर्थ ना जाई।"




       ------- अर्चना सिंह जया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें