ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 26 जनवरी 2022

एक शुरुआत शरद कुमार श्रीवास्तव

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आज लालबत्ती क्रोसिंग पर हमेशा की तरह रुकना पडा़ । अभी मैं 26 जनवरी के झंडारोहण समारोह के बाद लौट ही रहा था कि इस क्रासिंग पर लालबत्ती जली हुई थी इसलिए मुझे अपनी गाड़ी रोकनी पडी । मेरी गाड़ी की खिड़की के सामने एक दस- ग्यारह साल का बच्चा कई सारे झंडों के साथ खड़ा हो गया । इस तरह के बच्चे अक्सर ही इन चौराहों पर दिखाई देते हैं।  उनपर हमेशा कोई विशेष ध्यान नही जाता है । पता नही आज गणतंत्र दिवस के दिन मैं क्यों विचलित हो गया । मैं कार में अकेला ही था । खिड़की खोलकर मैंने उन झंडों के दाम पूछे और उसके सारे , लगभग, पंद्रह बीस झंडे, उससे ले लिए । उस बालक को कौतूहल हुआ । उसने पूछा कि अंकल आप इतने सारे झंडों का क्या करेंगे? मैंने उसके प्रश्न का जवाब न देकर उससे पूछा कि तुम्हारे सारे झंडे बिक चुके हैं तो अब तुम क्या करोगे । उसने कहा कि बस अपने घर जाऊँगा । मैंने उस बच्चे से पूछा कि वह कहाँ रहता है । इसपर उसने पुल के नीचे एक स्थान दिखाकर कहा कि यही पास मे ही रहता हूँ । मैने कहा मै भी तुम्हारे घर चलूँगा । यह कहकर मैंने अपनी गाड़ी को पुल के नीचे ही एक साइड में खड़ी की और गाड़ी से झंडे लेकर उस बच्चे के साथ उसके घर की तरफ़ गया । उसका घर टाट की पुरानी बोरियों पालिथिन इत्यादि से बना छोटा टेन्टनुमा घर था । उस बच्चे ने मुझे बताया कि यही उसका घर है । बहुत दिनों से मैं चाहता था कि मै समाज के इन लोगों के जीवन को पास से देखूं और कुछ करूँ । आज का समय ठीक था । इन बच्चों को आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन बच्चों को गणतंत्र दिवस के बारे में जानकारी दूंगा और झंडा और टाफी के लिए पैसे बाँटूंगा ।  मैंने समय का सदुपयोग करने के बारे मे सोंचा । उस बच्चे के साथ चलते हुए मैंने उससे उसका नाम पूछा । उसने मुझे नाम अपना नाम गुड्डू बताया । गुड्डू के साथ मुझे वहाँ  आया देखकर वहां आसपास के कई बच्चे आ गए थे । । सभी बच्चों को मैंने एक अर्धचक्र में खड़ा किया । फिर मैंने उनसे पूछा कि आप जानते हैं कि आज 26 जनवरी है । सब बच्चे एक ही सुर में बोल उठे कि जी हाँ आज 26 जनवरी है । मैंने सब बच्चों को वे झंडे बांट दिया और फिर पूछा कि 26 जनवरी मे हम क्या करते हैं तथा यह क्यों मनाया जाता है । मेरे यह पूछने पर एक छोटी लड़की बोल पडी कि आज के दिन हम झंडा फहराते है । दिल्ली में राजपथ पर झंडा हमारे राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं, फिर वहाँ सेना की परेड होती है और अलग अलग राज्यों की  झांकियां निकलती हैं । यह सुनकर मुझे अचम्भा हुआ कि इतना सब इस बच्चे को कैसे मालूम हुआ । कपड़ों और  रहने के परिवेश से तो नहीं लगता है कि ये बच्चे स्कूल जाते होंगे । मैंने उससे पूछा कि आप को यह सब कैसे पता  चला । उसी समय वहीं खड़ी एक स्त्री ने बताया कि सप्ताह  मे दो तीन दिन  शाम को एक भैया अपनी मोटरसाइकिल से आते हैं वही इन बच्चों को बैठाकर पढाई कराते हैं । उन्होंने ने ही इन्हे सब बताया है । मगर पूछा कि उनको आप लोग कुछ पैसे देते होगे ? यह सुनकर वह बोली कि नहीं बाबू वे बहुत भले आदमी है । उन्होंने ही सभी बच्चों को कापियां पेंसिल किताबें भी लाकर दिया है । अब मैं अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था कि इन बच्चों को महज एक झंडा पकड़ा कर और टाफी के लिए पैसे बाटकर मैं गौरांवित अनुभव कर रहा था कि मैं इन बच्चों की छोटी सी खुशी का हिस्सा बन रहा हूँ । लेकिन वह एक अंजान लड़का अपनी पढ़ाई से समय और पैसा निकाल कर इन बच्चों के सामाजिक उत्थान के लिए प्रयास रत है । यह एक छोटी सी शुरुआत ही सही पर बहुमूल्य प्रयास है और वह भी भी बिना किसी शोरशराबे के । निश्चय ही वह, इन गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल कराने के लिये सराहनीय योगदान देरहा है । उस स्त्री ने आगे बताया कि रविवार को उन बाबू के कुछ दोस्त लोग भी आते हैं जो इन्हें गाना बजाना भी सिखाते हैं । यह सुनकर मेरा सिर उन लोगों के लिए श्रद्धा से झुक गया कि हम सोचते ही रह गए और नई पीढ़ी के इन बच्चों ने इस नेक काम की शुरुआत भी कर दी है ।



 शरद कुमार श्रीवास्तव




2 टिप्‍पणियां:

  1. हृदय स्पर्शी कहानी। मुझे बेहद पसंद आई।

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  2. कहानी दिल को छू गई ,उत्क्रष्ट सृजन हेतु बधाई आपको💐आपको💐💐🙏

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