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रविवार, 26 जून 2022

बलशाली हूँ : एक बाल रचना वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 




बलशाली  हूँ स्वयं  शेर का

पंजा मोडूंगा

उसे चित्त करके मैं उसका जबड़ा तोडूंगा।


महाबली हूँ मेरे आगे कौन ठहर पाया, 

भागा पूँछ दबाकर मुझसे जो लड़ने आया।


तुमसब हो डरपोक ज़रा से चूहे से डरते,

मरियल बंदर से घबराकर हाय हाय करते।


चिड़ियाघर चलकरकेअपना दमदिखलाता हूँ

ढिशू ढिशू कर,बबरशेर को मार भगाता हूँ।


सबने मना किया कालू से ऐसा मत करना,

कहीं न उल्टा पड़े शक्ति का प्रदर्शन करना।


पर कालू ने किया अनसुना सबकी बातों को,

डाल दिया पिंजरे मेंअपने दोनों हाथों को।


किया शेर ने वार पकड़ पंजे को तोड़ 

बलशाली हूँ स्वयं शेर का

पंजा मोडूंगा

उसे चित्त करके मैं उसका जबड़ा तोडूंगा।


महाबली हूँ मेरे आगे कौन ठहर पाया, 

भागा पूँछ दबाकर मुझसे जो लड़ने आया।


तुमसब हो डरपोक ज़रा से चूहे से डरते,

मरियल बंदर से घबराकर हाय हाय करते।


चिड़ियाघर चलकरकेअपना दमदिखलाता हूँ

ढिशू ढिशू कर,बबरशेर को मार भगाता हूँ।


सबने मना किया कालू से ऐसा मत करना,

कहीं न उल्टा पड़े शक्ति का प्रदर्शन करना।


पर कालू ने किया अनसुना सबकी बातों को,

डाल दिया पिंजरे मेंअपने दोनों हाथों को।


किया शेर ने वार पकड़ पंजे को तोड़ दिया,

सुनकर भारी शोर शेर ने पंजा छोड़ दिया।


आपनी ताकत पर बच्चों अभिमान नहीं करना

कभी बड़ों की ताकत का, अपमान नहीं करना।

     


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            9719275453

                 😊😊

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