एक दूजे की पूंछ पकड़कर,
चले छछून्दर के बच्चे,
माँ के साथ दौड़ते सारे,
लगते हैं कितने अच्छे।
आँखें बंद रखो सब अपनी,
माँ ने उनको बतलाया,
चले चलो बस शांत भाव से,
बच्चों को यह सिखलाया।
बोलोगे तो बीच राह में,
दूर कहीं छुट जाओगे
भटक भटककर मरजाओगे,
घर की राह न पाओगे।
इंजन बनकर माँ बच्चों को,
चलना स्वयं सिखाती है,
सभी छछून्दर के बच्चों को,
माँ की सीख सुहाती है।
माँ का जो कहना मानेगा,
वह आगे बढ़ जाएगा,
निर्भय होकर वह जीवन की,
सारी खुशियां पाएगा।
माँ की ममता के आगे तो,
सब कुछ फीका - फीका है,
जीव जगत में सबकी माँ को,
बच्चों का सुख दीखा है।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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