ब्लॉग आर्काइव

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा. बढते फरिश्ते







समीर बड़ा  हो चला था ।  उसके  मम्मी  पापा और  घर वाले उसे ऐसा  ही समझते थे ।   क्लास  मे सबसे लम्बा  बच्चा था शायद इसीलिए उसको अपने  बड़े होने  का एहसास ज्यादा  कराया जाता   था ।   उसे समझ  नहीं  आता  था  कि  वह  बड़ा  हो  गया है या अभी छोटा ही है ।   वह हर समय यह मानता था कि वह अभी  तक  बच्चा  है ।   जब वह कोई गलती  करता था तब सभी उससे  कहने  लगते  थे  कि  अब वह कितना  बड़ा  हो  गया  है  और गलतियों  नादानियाँ बिल्कुल  छोटे  बच्चे  की  तरह  ही  करता है ।   अभी स्कूल से आया तो अपना स्कूल बैग सोफे पर फेंका जूते भी सोफे के सामने उतार कर टीवी के सामने बैठ  गया।  यह उसके मन पसंद बच्चों के लिए प्रसारित होने वाले प्रोग्राम डोरेमान के एपीसोड का समय था।  मम्मी ने देखा तो वे समीर के ऊपर नाराज हो गयीं और जाकर टीवी आफ कर दिया।   मम्मी बोली कि अब तुम बड़े क्लास में आ गए हो।  पढ़ाई का इतना. बोझ है थोड़ी देर आराम कर लो फिर होमवर्क करना है।  समीर को याद आया कि बाहर एक घंटे बच्चों के साथ बॉल भी खेलना है।  टीवी देखने का समय निर्धारित है सात से आठ बजे शाम तक फिर ट्यूशन टीचर जी आ जाएंगे।  अभी तक वह छोटा सा बच्चा था पर अब वह बड़ा हो गया है।.  अच्छी विडम्बना है जब वह साइकिल से  स्कूल  जाना चाहता है  तो  मम्मी  पापा  कहने लगते  थे  कि  अभी तुम बहुत  छोटे  हो  साइकिल  कहीं  लड़ा  दोगे । परन्तु और सब बातों के लिए वह बस बड़ा हो गया है।

समीर देखता था कि  उसके  साथ  के अन्य  बच्चों  के  जीवन में  रुकावटें  नहीं आ रही  हैं  ।   वे सभी  कद में  छोटे हैं इस वजह से उनकी गिनती छोटे बच्चों  मे ही होती है   ।     समीर की  आवाज़  भी  अलग  हो गई  है ।   इस कारण से भी उसे  लोग  बडों में  शुमार  करने  लगे हैं ।   इस बड़प्पन  के  एहसास  से  उसे  क्लास  का मॉनीटर बना दिया गया था।

बड़े बने रहने से समीर को फायदा भी था।  राकेश जो उसी के क्लास में पढता है वह भी समीर से खौफ खाता है।  लेकिन समीर को बड़े क्लास के बच्चे लिफ्ट नहीं देते हैं। समीर इस बात से नाराज है।     वह जल्दी से  बड़ा  होना चाहता है  लेकिन  इधर कुछ दिनो से उत्पन्न हुई इस स्थिति का का उसे कोई विराम नहीं दिख रहा है।   उसके  क्लास टीचर ने  जब समीर  को कुछ  खोया हुआ  देखा  तो उसे अपने पास  बुलाया और  उसकी  समस्या  को सुनने के  बाद  उसे  स्कूल की  फुटबॉल  टीम  मे शामिल  कर लिया ।  पेरेन्ट  टीचर  मीटिंग  मे भी उन्होंने  समीर  की  माँ के साथ  समीर की  बढ़ती हुई उम्र  की समस्याओं पर विचार  कर समीर को अधिक से अधिक  समय देने के लिए  कहा ।   समीर  और उसकी  माँ  अब मित्र  हैं और  वह अब अपनी  सब बातें  माँ  से मित्रवत  करता है ।


          शरद कुमार श्रीवास्तव


तितली रानी शरद कुमार श्रीवास्तव









नन्ही नन्ही प्यारी प्यारी
उडती देखो कितनी सारी
रंग बिरंगी गुलाबी पीली
डिज़ाइन दार हरी नीली

आकाश से उडती आती
फूलों पर बैठ ये इठलाती
मैं इसे हूँ छूने जब जाती
डर कर ये दूर उड जाती

डी पी एस इन्दिरापुरम की कक्षा 1की छात्रा मान्या रावत द्वारा बनाया चित्र


देलही  पब्लिक स्कूल  इन्दिरापुरम  गाजियाबाद के 1 B की छात्रा  कुमार मान्यता  द्वारा  रचित  एक  सुन्दर  चित्र


प्रिंसेज डॉल और हैप्पी न्यू ईयर शरद कुमार श्रीवास्तव

















मम्मी-पापा ने खुश होकर आज प्रिन्सेज डॉल के कान मे हैप्पी न्यू ईयर  कहा । प्रिन्सेज सोते-सोते अपने पापा के गले से लिपट गई और आँखें बंद करके ही बोली पापा आज न्यू ईयर है? पापा बोले हाँ बेटा, आज न्यू ईयर है। प्रिन्सेज ने खुश होकर अपनी आँखे खोल दी । प्रिन्सेज खुशी से फूली नहीं समा रही थी । उसकी मम्मी ने भी प्यार करके उसे बिस्तर से बाहर निकाला और कहा कि जल्दी से तैयार हो जाओ स्कूल की देर हो रही है । आज तो तुम्हें नये कपड़ों में स्कूल जाना है । सब बच्चों के लिए टाफी बैलून भी लेकर जाना है ।
प्रिन्सेज जल्दी से तैयार होकर बच्चों के लिये टाफी बैलून के उपहार लेकर स्कूल वैन में बैठ कर स्कूल चली गई । स्कूल पहुंचने पर प्रेयर मे उसकी क्लास टीचर ने और हेड मैम ने भी  सब बच्चों  को हैप्पी न्यू ईयर कहा । प्रिन्सेज ने और सभी बच्चों नेआपस मे बैलून और टाॅफियाँ बाटी और एक दूसरे को न्यू ईयर कहा।  सभी बच्चे बहुत खुश थे।  क्लास टीचर ने  बच्चों को नये वर्ष पर एक दूसरे के साथ लड़ाई झगड़ा भूलकर नये सिरे से दोस्ती करने के लिए कहा सब बच्चों को नये सिरे से पढने मे जुट जाने के लिए भी सलाह दी। 

स्कूल के बाद जब प्रिंसेज घर आई तो पापा ने डॉल को बताया कि उसकी नानी जी ने एक पार्सल भेजा है । पार्सल के साथ हैप्पी न्यू ईयर का कार्ड लगा है। प्रिन्सेज बहुत खुश हुई। नानी जी का  गिफ़्ट पैक खोला गया तो पार्सल से एक सुन्दर सा खिलौने वाला मेढक निकला जो गाना भी गाता है और जो कहानी भी सुनाता है । प्रिंसेज बहुत खुश हुई और  नानी जी की फोटो के सामने नानीजी को उनके प्यारे से गिफ्ट के लिए थैंक्स कहा तो नानी जी अपनी फोटो मे मुस्कराते हुए हैप्पी न्यू ईयर कहती दिखाई पड़ीं ।।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

चुटकुले. संकलनकर्ता शरद कुमार श्रीवास्तव





1 आशी-पापा मुझे लिखना आ गया है।
पापा — यह क्या लिखा, पढकर सुनाओ।
आशी- अभी पढना नहीं आता सीख रही हूँ।

2 बेटा- पापा आप बिना देखे दस्तखत कर लेते हैं।
पापा — हाँ बेटा लेकिन क्यों?
बेटा- मेरे रिपोर्ट कार्ड में कर दीजिये।

3 राजू- माली पौधों में पानी दो।
माली- सर तेज पानी बरस रहा है।
राजू- छाता लगा के पानी दो

4 सिपाही- ये बडे ध्यान से कौन मंजिल देख रहा था।
मुसद्दी- पाचवी मंजिल
सिपाही- निकालो पचास रुपए।
मुसद्दी ने खुशी खुशी पचास रुपए दे दिया। उन्हें खुशी इसबात की थी कि वह देख अट्ठारहवी मंजिल थे।

 5 रामू — आज मैंने आफिस से आते समय पांच रुपये बचाये अजय — कुमार कैसे रामू — मैं  बस  पीछे दौड़ कर घर आया अजय — अरे टैक्सी  पीछे दौड़ते तो सौ रुपये बच जाते

6  शौर्य अच्छा यह बताओ कि हिन्दी व्याकरण में एक वचन और बहुवचन किसे कहते हैं शाश्वत-एक वचन से एक वस्तु और बहुवचन एक से अधिक चीजो का होना पता लगे। वेरी सिम्पल। शौर्य- उदाहरण दो शाश्वत- पैजामा ! ऊपर एक वचन और नीचे बहुवचन। वेरी सिम्पल।
मालिक- अरे मोहन फ्रिज  में रखे रसगुल्ले क्या हुए।
मोहन-  फ्रिज साफ करने के लिये आप ने ही तो कहा था ।

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

लालबिहारी : शरद कुमार श्रीवास्तव






लालबिहारी  को  अपनी माँ का बाहर का काम  करना पसंद  नहीं  है  । उसकी  माँ  रोज सबेरे लालू  को उसकी  दादी के पास  छोड़कर  अपने पति के  साथ  मजदूरी  करने  के  लिए  चली जाती है ।   लालू  अपनी  दादी  के  साथ  दिन भर  खेलता रहता  है  परन्तु सरे शाम  अपनी  माँ  के काम  से  वापस  आने  के  समय  से  कुछ पहले  से  ही  झोपड़ी  के  दरवाजे  पर छुपकर  खड़ा  हो  जाता है  ।   जैसे ही  उसके  माता पिता घर  वापस  आते  तो लालू  उनसे  चिपक जाता है  ।


लाल बहादुर  के  माता पिता   काम से  लौटते समय  लालू के लिये कुछ न कुछ,  खाने  के  लिए  लेकर  आते हैं ।  वह बहुत  चाव से खाता है , लेकिन  उसका कुछ  हिस्सा उसके  घर के बाहर  खडे टामी कुत्ते  को  भी  देता है ।   टामी से लालू की बहुत  दोस्ती  है ।   टामी को भी लालू के माता पिता के  आने की  प्रतीक्षा  रहती है  और वह  उन लोगों  के  आते ही दुम हिलाकर  अपनी खुशी प्रदर्शित करता है ।   लाल बहादुर की दादी  को लेकिन  लालू की टामी से दोस्ती  अच्छी  नही लगती है ।   उन्हें  लगता  है  कि  कही टामी  छोटे  बच्चे  को  काट न ले। वह इसलिए   एक छड़ी लेकर   टामी को भगाया  करती  हैं  ।   लाल बहादुर  लेकिन टामी के साथ  मिलकर  खेलना बहुत  अच्छा  लगता  है   ।  वह   टामी के साथ  सड़क पर दौड़ता  रहता  है  और   किनारे  बने पार्क तक भाग कर  पहुंच  जाता है    ।


एक दिन रोज  की  तरह  सड़क पर लाल बहादुर  खेल रहा था  कि  सड़क  पर  एक  पतंग  कही से कट कर  आ गई ।    रंग  बिरंगी  पतंग  को पकड़ने  के लिए  लालू दौड़  पड़ा  ।   इस भाग  दौड़  में  वह सड़क  के  किनारे  खड़ी  एक गाडी से टकरा  कर  गिर  पड़ा  ।   लालू को  चोट  आ गई   ।  उसके  खून  बह रहा  था  और वह  चल नहीं  पाया रहा था  ।  टामी भौंकते  हुए  लालू  के  घर जाकर  वहाँ   से  उसकी दादी  को कपड़े  से  पकड़  कर अपने  साथ   ले आया ।     दादी लाल बहादुर  को गोद  में  लेकर  घर ले आयीं ।  अब दादी  को समझ  में  आ  गया कि कुत्ते  वफादार  होते हैं ।






                                   शरद  कुमार  श्रीवास्तव




अभी तो सर्दी शुरू हुई है
सर्दी से डरती न बिल्ली
सूट बूट पहन ओढ़ कर
सैर करने निकली दिल्ली

सारी मलाई चट कर डाली
बेबी भगाती बजाकर ताली
चूहों के घर के बाहर जाकर
जल्द उठो सलाह दे डाली


                        शरद कुमार श्रीवास्तव




प्रिंसेज डॉल की बर्थडे पार्टी : शरद कुमार श्रीवास्तव






मम्मी-पापा ने खुश होकर आज प्रिन्सेज डॉल के कान मे हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज सोते-सोते अपने पापा के गले से लिपट गई और आँखें बंद करके ही बोली पापा मेरा बर्थ डे है? पापा बोले हाँ बेटा, आज तुम पाँच साल की हो गई हो !
 अब तुम एक साल और बड़ी हो गई हो । प्रिन्सेज ने खुश होकर अपनी आँखे खोल दी । वह बोली  तो मै रूपम से एक साल बड़ी हो गई हूँ । रूपम डाॅल तो अभी फोर इयर की ही है। प्रिन्सेज खुशी से फूली नहीं समा रही थी । उसकी मम्मी ने भी प्यार करके उसे बिस्तर से बाहर निकाला और कहा कि जल्दी से तैयार हो जाओ स्कूल की देर हो रही है । आज तो तुम्हें नये कपड़ों में स्कूल जाना है । सब बच्चों के लिए टाफी बैलून भी लेकर जाना है ।
प्रिन्सेज जल्दी से तैयार होकर बच्चों के लिये टाफी बैलून के उपहार लेकर स्कूल वैन में बैठ कर स्कूल चली गई । स्कूल पहुंचने पर प्रेयर मे उसकी क्लास टीचर ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और हेड मैम के पास ले गई ।   हेड मैम ने भी उसे प्यार किया और प्रेयर के बाद सब बच्चों ने डाल को हैप्पी बर्थ-डे विश किया। क्लास में आने के बाद क्लास के बच्चों ने उसे हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज ने सभी बच्चों को बैलून और टाॅफियाँ बाटी । हरीश ने टाफी ले तो लिया पर उसने न तो प्रिन्सेज  हैप्पी बर्थ-डे कहा न थैंक्यू कहा । इस बात से प्रिन्सेज का चेहरा उतर गया। टीचर ने  जब देखा तब उन्होंने हरीश से अलग बुलाकर अकेले में पूछा कि यह क्या बात है । हरीश ने मैम को बताया कि पहले उसकी बर्थ-डे में प्रिन्सेज ने भी उसे विश नहीं किया था । मैम ने हरीश को समझाया कि बदला लेना बुरी बात होती है ।   फिर हरीश ने जाकर अलग से प्रिन्सेज को हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज ने हरीश से हाथ मिलाया और वे अच्छे दोस्त बन गए ।
शाम को सिटी होटेल में प्रिन्सेज के पापा ने प्रिन्सेज की हैप्पी बर्थ-डे की पार्टी रखी थी । पापा मम्मी के साथ प्रिन्सेज होटल पहुंच गई थी   ।   मम्मी-पापा प्रिन्सेज के लिए एक बहुत ही प्यारी फ्राक लाये थे वही फ्राक उसने पहन रखी थी फूलदार शू और गोल्डन हेयर बैन्ड भी उस के ऊपर बहुत सुन्दर लग रही थी । केक को तो अपने समय पर ही बेकरी से आना था । अतः उसके लिए चिंता की कोई बात नहीं है । चाचू अपने कैमरे के साथ फिट थे दादी बाबा जी भी चाचा-चाची के साथ ही आ गये थे । दोस्तों मे पहुचने वालों भे मुनमुन और बन्टी थे धीरे-धीरे सभी लोग आ गये थे । कुछ दोस्त मम्मी-पापा के थे तो कुछ प्रिन्सेज डॉल के थे । उसी समय वेटर ने एक पार्सल लाकर दिया और बोला कि अभी अभी कोरियर ने लाकर दिया था । पापा ने पार्सल देखकर डॉल को बताया कि उसकी नानी जी ने भेजा है । पार्सल के साथ हैप्पी बर्थ-डे कार्ड लगा है। प्रिन्सेज बहुत खुश हुई कि नानी जी को उसका जन्मदिन याद था। सब बच्चों ने कौतुहल वश नानी जी की गिफ्ट देखना चाहा । सब लोगों के सामने गिफ़्ट पैक खोला गया तो पार्सल से एक सुन्दर सा खिलौने वाला खरगोश निकला जो गाना भी गाता है और जो कहानी भी सुनाता है । प्रिंसेज उसे पाने कर बहुत खुश हो गई । फिर सब बच्चों ने गेम खेले।
तब तक केक 🎂 आ गया था । सब बच्चे केक को घेर कर खड़े हो गये। प्रिन्सेज डॉल ने तब मम्मी-पापा और दादी बाबा के साथ केक काटा और सब लोगों ने केक खाया और फिर बच्चो ने पोयम, चुटकुले गाने सुनाए . हरीश का गाना " सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" की सबने खूब तारीफ की . वहाँ एक मैजेशियन भी आये थे उन्होने बच्चो के मन पसन्द जादू दिखाऐ कागज के फूल को कबूतर बना दिया. एक खाली डिब्बे के अन्दर से खरगोश निकाल दिया. सब बच्चों को खूब मजा आया. खाने की प्लेटे आ गईं थी उन प्लेटो मे केक मैगी, स्प्रिंग रोल्स पकौड़ी , हलुआ और गुुलाबजामुन रखा था सब लोगों ने बड़े चाव से खाया . चाचू ने फोटो खींची । सभी बच्चों को रिटर्न गिफ़्ट मिली और सब अपने घर चले गये
घर आकर प्रिन्सेज  ने नानी जी की फोटो के सामने नानीजी को उनके प्यारे से गिफ्ट के लिए थैंक्स कहा तो नानी जी की फोटो मे नानीजी मुस्कराते हुए दिखाई पड़ीं ।।


                                     शरद कुमार श्रीवास्तव 

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

नटखट लल्ला : शादाब आलम





हाथ झटके, पैर उछाले
रोते-रोते आँख सुजा ले
न अम्मा से न नानी से
चुप होता न आसानी से
भरी दूध की शीशी पाकर
पीता है मुस्का-मुस्काकर
शीशी खाली फिर से हल्ला
करने लगता नटखट लल्ला।






                           - शादाब आलम

शामू 6 गतांक से आगे : शरद कुमार श्रीवास्तव







अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था उन्हें बहुत जतन के साथ रखने पर भी कुछ नोट कीड़े खा गये थे । उन नोटों को शामू ने इशरत मियाँ की मदद से बदलवा दिये थे और बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता था।
आगे पढिये :-
बैंक के खाते में शामू प्रति माह अपनी तनख्वाह से कुछ रुपये और दादी के दिये रुपये  बचा कर  नियमित रूप से जमा करने लगा । दादी को भी खुशी हुई कि उसके पैसे बैंक मे जमा हो रहे हैँ । अब रुपये चोरी चले जाने या कीड़े /चूहों के द्वारा कुतरे जाने का डर नहीं है ।   बिहारी अभी पहले की तरह रुपये अपनी माँ को दे जाता था और अपनी माँ से उन रुपयों के बारे मे कभी नहीं पूछता था ।
शामू इशरत मियाँ के गैरेज में मेहनत से काम करता था । धीरे धीरे वह कार रिपेयरिंग के   कार्य  से पूरी तरह  से परिचित  हो  गया था ।     कार आते ही उसकी आवाज से ही समझ जाता था कि गाडी  का कौन सा हिस्सा  खराब हो  गया  है ।  इंजन  के  काम  में  काफी माहिर  हो गया था  ।   कार के  इंजन  का  पिस्टन  हो या रिंग  का बदला जाना या  इंजन  का  बदला जाना, सब काम  करने को वह बहुत  अच्छे  से  सीख  गया  था  ।  इसकी  वजह थी  कि  इशरत  मियाँ  शामू  को  हमेशा  अपने  साथ  लगाए रखते थे।   इशरत मियाँ  के  प्यार  और अपनी लगन  की वजह  से  वह  मोटर मैकेनिक  का काम  अच्छी  तरह  से  सीख  गया था।
नुसरत  से  शामू अपने काम भर की पढ़ाई  लिखाई  भी  सीख  गया  था ।    कुछ  समय  बाद , नुसरत  का एडमीशन  उनके प्रिय  विषय  कम्प्यूटर  साइंस   के  लिए जबलपुर  के   इंजीनियरिंग कालेज  मे  हो गया  था ।  कालेज  मे तीन साल कैसे निकल गये पता नहीं  चला और कैम्पस   सेलेक्शन  में   नुसरत  सिद्दीकी  को  बैंगलोर  की कम्पनी   ने  अच्छी  शुरुआत  पर बुला लिया  ।   अब नुसरत  को आसानी  से  छुट्टी  न  मिल  पाने  के  कारण  इशरत  मियाँ  को  तकलीफ  होती  थी  ।   उनके  या बेगम  की बीमारी  दवादारू  आदि  सब कामो  मे शामू  ही सुझाई  देते  थे ।  गैरेज हो या घर हर स्थान  पर शामू  अपनी  जिम्मेदारी  निभाता था ।   इशरत भाई  का हर काम शामू के बगैर पूरा  नहीं  होता  था
नुसरत  ने बंगलोर  पहुँचाने  के बाद  अपने  माता  पिता  को  बंगलोर घूमने  के  लिए  बुलाया  ।  वहाँ  एक  माह  बिता कर वह लोग  अपने  घर  वापस  लौट  आये ।   शामू  के ऊपर  गैरेज  का  पूरा भार था ।  जब इशरत  मियाँ  लौट  कर आये गैरेज  ठीक  ठाक  मिला  । प्रत्येक   दिन  का हिसाब किताब  लिखा हुआ   मिला । यह सब देखकर  इशरत  मियाँ  खुश हो  गए  ।    अब  गैरेज  के  सब काम  शामू  करता था  ।  शामू को अब अधिक  जिम्मेदारी के   काम  मिलने लगे  थे  ।  बैंक  मे रुपये  जमा  करना  या निकाल  कर लाना सारे काम  शामू  करता  था  इशरत  भाई  जब विशेष  जरूरत के समय ही  काम अपने  हाथ मे लेते थे ।    नुसरत   भाई  की  माँ  शामू  पर बहुत  भरोसा  करती थी  इशरत  मियाँ  को डायबिटीज  है इसलिए  शामू  को  उन्होंने  हिदायत  दे  रखी  थी  कि  इशरत  मियाँ  को  बाहर  की चीजें  नही  खानी है ।   बारह बजे  की  चाय  शामू   गैरेज  के  किसी  लड़के  को  घर  भेजा कर मंगवा  लेता था  ।   नुसरत  भाई  की माँ एक चाय  शामू  के लिये   भी भेजती थी।

आगे अगले अंक में 

शरद कुमार श्रीवास्तव 

पहियों के अविष्कार की कहानी. : शरद कुमार श्रीवास्तव




नाना जी के साथ चीकू भइया पार्क से लौट रहे थे । चीकू एक नर्सरी की पोयम गुन गुना रहा था ।. सूरज गोल चन्दा गोल, मम्मी जी की रोटी गोल, पापा जी का पैसा गोल फिर  कुछ सोचने लगा. कुछ रुक कर अपने भोले पन के साथ पूछा ,अच्छा नाना जी,पापा की कार के पहिये भी तो गोल होते हैं । नाना जी बोले हाँ बेटाजी वे भी गोल होते हैंं लेकिन ये मशीन का हिस्सा होते हैं तुम्हारे पापा का पैसा, तुम्हारी मम्मीजी की रोटी, सुरज, चन्द्रमा भी गोल होते हैं परन्तु यह मशीन नहीं होते हैं।  पहिये एक तरह की मशीन होते है जो एक धुरी पर घूमते हैं तभी तो तुम्हारी कार चलती है। 
अच्छा नाना जी, मैने तो सुना है कि पेट्रोल से गाडी चलती है चीकू की तीव्र बुद्धि के सामने एक बार नाना जी सकपका गये । वे बोले तुमने ठीक ही सुना है। पेट्रोल से कार का इन्जन चलता है, फिर यह इंजन ताकत लगा कर पहियों को तेजी से घुमाता है तो पहिया गोल घूमता हुआ गाड़ी को आगे बढाता है । अच्छा बताओ ऐसे कौन कौन से पहिये तुम जानते हो जो धुरी पर चलते हैं. चीकू बोला कार ,साइकिल,मोटरसाइकिल के पहिये. नाना जी बोले पौटर्स व्हील, ड्राइवर की स्टेरिग और सभी मशीने आदि बहुत सी चीजो मे पहिये या पहिये जैसी चीजों का उपयोग होता है ।
जानते हो  पहिये का इस्तेमाल पहली बार लगभग ५५०० वर्ष पहले किया गया था ।    चीकू ने पूछा, वह कैसे ? तब नानाजी बोले, कहा जाता है कि सबसे पहले कुम्हार का चाक् बना जिस पर आदि काल मे बर्तनों को बनाया होगा । फिर बड़े- बड़े लकड़ी के लट्ठो को लकड़ी के पहिया नुमा दो चीजो को बीच मे एक डन्डे से जोड कर लुढ़काया जाता रहा होगा । यही आगे चलकर, जाने अनजाने ट्रान्सपोर्ट और आज की मशीनो के बनाने की पहल रही होगी
नानाजी के पहियों के अविष्कार के रहस्योदघाटन सुनकर, चीकू अवाक रह गया था।




                                 शरद कुमार श्रीवास्तव 



कछुआ और खरगोश

कछुआ और खरगोश में ,
हुई दोनो में रेस ।
बहुत घमण्डी था खरगोश ,
मारता था वह टेस ।
दोनों में एक बात चली,
चलो लगाएँ रेस।

हाथी आया बंदर आया ,
आया जंगल का राजा।
चिड़िया रानी गाना गाई,
लोमड़ी बजाया बाजा।

दोनो निकल पड़े रेस में,
खरगोश दौड़ लगाया ।
धीरे धीरे कछुआ चलकर,
मंद मंद मुस्काया।

थक कर बैठा खरगोश राजा,
खाने लगा वह गाजर।
खाते खाते वहीं सो गया,
नाक बजा बजा कर।

कछुआ आया धीरे धीरे ,
देखा खरगोश को सोते।
निकल पड़ा वह आगे भैया
खुश होते होते।

नींद खुली जब खरगोश का,
फिर से दौड़ा होकर खुश ।
जीत गया कछुआ राजा
ख़रगोश को हुआ दुःख।

आया जंगल का राजा ,
कछुआ को दिया पुरस्कार ।
घमंडी एक खरगोश का ,
हो गया तिरस्कार ।


                                 प्रिया देवांगन "प्रियू"
                                 पंडरिया  (कवर्धा)
                                 छत्तीसगढ़

गुड़िया रानी : महेन्द्र देवागंन माटी





छमछम करती गुड़िया रानी,  खेले छपछप पानी ।
उछल कूद वह करती रहती,  डाँटे उसको नानी ।।

बस्ता लेकर जाती शाला , ए बी सी डी पढ़ती ।
कभी बनाती चित्र अनोखे,  कभी मूर्ति को गढ़ती ।।

साफ सफाई रखती अच्छी,  कचरा पास न फेंके ।
कूड़ा कर्कट आग लगाकर,  हाथ पैर को सेंके ।।

सबकी प्यारी गुड़िया रानी,  दिनभर शोर मचाती ।
खेलकूद में अव्वल रहती,  सबको नाच नचाती ।।




महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया  (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewang

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

गिलहरी



धरा पर कभी पेड़ पर ठहरी
दाना-तृन खाती हुई  गिलहरी
पिछले पैरों पर खड़ी हो जाती
दाना खाती हुए वो हमे लुभाती

पंछी चिडियों से वह पंगा लेती
दाना किसी को नहीं खाने देती
फुदक इधर से उधर वह जाती
कण-कण दाना चट कर जाती

                             शरद कुमार श्रीवास्तव


अम्मा मेरी : शादाब आलम





मैं जब भी शैतानी करता
तो अम्मा चिल्लाती है
नहीं मानता कभी-कभी तो
मुझको चपत लगाती है।
जैसे ही मैं रोने लगता
अपने पास बुलाती है
दुलराती-सहलाती मुझको
और बहुत पछताती है















शादाब आलम 

प्रिंसेस डॉल और टिंकपिका का जादूगर. : शरद कुमार श्रीवास्तव






प्रिंसेस डॉल स्कूल से लौट कर आई तो थोड़ा कुछ खा लेने के बाद वह स्कूल का होम वर्क ले कर बैठ गयी। आज मैथ वाली मैम ने उसे 100 अंकगणित ( मैथ) के सवाल कर के लाने को कहा था। वह सवाल करने बैठ तो गयी लेकिन वह एक भी सवाल कर नहीं पा रही थी। उसे ध्यान आया कि क्लास में जब मैथ टीचर सवाल करना सीखा रहीं थी, तब प्रिंसेस और रूपम, कट्टिम कुट्टा का खेल क्लास में खेल रही थी। अब जब सवाल नहीं समझ में आ रहा था तब प्रिंसेस को रुलाई छूट रही थी। वह क्या करे कैसे करे वह सोच रही थी। उसने सोचा की रूपम को फोन लगाए लेकिन रूपम भी तो कट्टिम कट्टा खेल रहजी थी वह क्या बतायेगी. वह रो रही थी कि दीवार पर बैठा मकड़ा उससे बोला रो मत ! मैं, अगर, सब सवाल कर दूँ तो तुम मुझे क्या खाने को दोगी। प्रिंसेस खुश होकर बोली मैं तुम्हे अपनी फेवरिट नट चॉकलेट दूंगी।


 मकड़े ने उससे कहा की तुम अपने खिलोनो से खेलो मैं अभी तुम्हारे मैथ के सवाल कर देता हूँ। प्रिंसेस ने अपना मुंह खिलौने की तरफ किया, तब तक मकड़े ने, उसकी कापी के सब सवाल हल कर दिया और चॉकलेट उठा कर गायब हो गया।

मैथ की टीचर को बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने अंग्रेेजी की मैडम से कहा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने भी प्रिंसेस को 100 लाइन का ट्रांसलेशन दिया आज भी स्कूल में प्रिंसेस और रूपम साथ साथ खेल रही थी। इसलिए उसे पता ही नहीं लगा । परन्तु जब उसने घर में होम वर्क की कापी खोली तब उसे देख कर रोने लगी। वह मकड़ा फिर आया और बोला आज तो मैं तुम्हारा कलर बॉक्स लूंगा। उसने उसी तरह उसने प्रिंसेस डॉल का ध्यान हटा कर सारे ट्रांसलेशन कर डाले। अब मकड़ा प्रिंसेस डॉल का कलर बॉक्स भी चला गया। 

दो दिनों के बाद पेरंट टीचर मीटिंग में प्रिंसेस की मम्मी से मैथ की मैम और अंग्रेजी की मैम ने प्रिंसेस की बहुत तारीफ़ किया। लेकिन कहा कि घर से सब सवाल कर लाती है पर क्लास में रूपम से बातें बहुत करती है। कहीं आप तो घर में उसकी मदद तो कहीं नहीं कर देती हैं । ऐसे उसके सवाल कोई दूसरा कर देगा तो आप की प्रिंसेस बुद्धू रह जायेगी उसे तो कुछ नहीं आएगा।

 प्रिंसेस की माँ को भी दाल में कुछ काला नजर आया। घर आ कर वह जादू से गायब होकर दरवाजे के पीछे छुप कर बैठ गयी। उन्होंने देखा की एक मक्खी और एक मकड़ा आपस में बात कर रहे थे। मकड़ा बोला की मैं टिंकपिका से आया हूँ वहाँ के जादूगर ने भेजा है। प्रिंसेस के सब सवाल मैं ही कर देता हूँ। धीरे धीरे जब वह वीक (कमजोर) हो जायेगी तब उसे बुद्धू बना कर टिंकपिका का जादूगर अपने साथ पकड़ कर ले जाएगा और बार्बी डॉल बना कर अलमारी में बंद कर देगा । इससे वह बहुत पावरफुल हो जाएगा , तब उसका कोई कुछ नहीं कर सकता और वह बहुत ताकत वाला बन जाएगा।

प्रिंसेस को ना तो उस मकड़े और मक्खी की बात कुछ सुनाई दे रही थी न तो वह समझ ही पा रही थी कि मकड़ा उसका काम क्यों कर दे रहा है। प्रिंसेस की माँ तो वहाँ जादू से छुपी थीं उन्होंने मकड़े की सब बातें सुन ली थी । वो जाला साफ़ करने वाला एक झाड़ू लेकर आयीं और उन्होंने जाला साफ कर दिया और मकड़े को मार दिया। प्रिंसेस की मम्मी प्रिंसेस से बोली की यह मकड़ा तुम्हारा होम वर्क करके तुम्हे कमजोर कर दे रहा था ताकि तुम्हे बुद्धू बनाकर वह बदमाश जादूगर पकड़कर ले जाय और बार्बी डॉल बना कर अपनी अलमारी में बंद कर दे। अब तुम अपना होम वर्क खुद किया करो जिससे तुम अधिक बुद्धिमान बन सको।

शरद कुमार श्रीवास्तव 

शामू 5 एक धारावाहिक कहानी शरद कुमार श्रीवास्तव :







अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत मियाँ  ने शामू से पूछा कि काम करोगे।   शामू ने तुरंत हाँ कर दी  और इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । अपने एक साथी की मदद से खाने के समय या खाली समय थोड़ी पढ़ाई लिखाई भी शुरू हो गई थी ।  कुछ  ही दिनो  मे गैरेज के  टूल्स  औज़ार  आदि  के  नाम  का  पता  हो गया था।   इस नये काम से उसपिता बिहारी  और  उसकी दादी  भी खुश  थी ।    इशरत भाई  को उसने कई बार ग्राहक के छूटे रुपए पैसे जो गाडी में मिलते थे वह ला कर दिए थे ।   इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे।
आगे पढिये :-
इशरत मियाँ  के पिता के भाई लोग  भारत  पाकिस्तान  के  बटवारे  के  समय पाकिस्तान  चले गये  थे ।  लेकिन  इशरत  मियाँ  के  पिता  जी   अपने  परिवार  के  साथ  भारत  छोड़कर  नहीं  गये ।  इशरत  मियाँ  अपने  माता पिता की इकलौती  संतान  थे  और उनका  भी एक ही बेटा था ।  इन्टरमीडियेट मे पढ़ रहा था नाम था नुसरत सिद्दीकी ।  वह लिखने पढने मे तेज था।  इशरत  भाई  उसकी मेहनत  लगन  को अहमियत  देते  थे  ।  नुसरत  की  पढ़ाई  लिखाई  की ओर विशेष  ध्यान  दिया  करते थे ।  नुसरत पढाई में से कुछ समय निकाल कर अपने पिता के गैरेज जाता था अपने पिता को खाना खाने के लिये घर भेजने के लिए । उस समय वह कालेज से आ चुका होता था । शामू के पढने के शौक को देखकर वह समय समय पर उसकी सहायता भी कर दिया करता था । दरअसल कालेज में नुसरत के एक लेक्चरार ने गरीब बच्चों की पढ़ाई की समस्या का जिक्र किया था । संवेदनशील नुसरत भी सोचता था कि वह इस दिशा में काम करे तो उसको आसानी से इस बात का मौका भी मिल गया अतः शामू को अपनी खुशी से पढ़ा रहा था और वह इसके लिए भगवान का शुक्रगुजार था ।
शामू का पिता , बिहारी, हमेशा इतवार को आता था । अपने माँ को और अपने बेटे के पास , उन्हें देखने के लिए । वह शामू से खुश रहता था। उसकी हमेशा इच्छा रहती थी कि शामू पढ लिख कर बड़ा आदमी बन जाय। लेकिन स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाने से वह असहाय महसूस करता था। भीख से पाये पैसे वह अपनी माँ के हाथों में सौंप जाता था। शामू की दादी उन पैसों को बहुत जतन से रखती थी। शामू को भी वह पता नहीं था कि दादी के पास पैसा है।
एक दिन शामू घर गया तो उसने देखा कि उसकी दादी रो रही है । शामू ने जब दादी से पूछा तब दादी ने उसे कुछ रुपयों की गड्डी दिखाई जिसे कीड़े खा गये थे । शामू दूसरे दिन गैरेज गया तब दादी से पूछकर अपने साथ उन रुपयों को भी ले गया ।
इशरत मियाँ को उसने नोट दिखाए । कुछ नोट काम के थे । कुछ नोट बाजार में चल नहीं सकते थे उन रुपयों को लेकर इशरत भाई शामू के साथ नोट बदलने वाले की दुकान में ले गये जहाँ कमीशन पर नोट बदले जाते थे । वहां भी शामू को कुछ रुपये मिल गये । इशरत मियाँ ने शामू से कहा अब तो तुम कुछ पढ़ लिख सकते हो अपना नाम लिख सकते हो और बारह साल के हो गये हो । अतः पैसों को बैंक के खाते में रखो । उन्होंने शामू को बैंक के खाते के बारे मे समझाया । शामू को इशरत मियाँ एक दिन अपने साथ बैंक लेकर गये और उसका खाता खुलवा दिया । अब उसने हर माह अपनी तनख्वाह के रुपये और दादी के दिये रुपये बैंक की पासबुक में जमा करना शुरू कर दिये थे ।

आगे छठे अंक में 



शनिवार, 16 नवंबर 2019

नशा छोड़ो : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना






नशा नाश का जड़ है प्यारे , इसको मत अपनाओ ।
स्वस्थ अगर रहना चाहो तो , सादा भोजन खाओ ।।

इज्जत पैसा दोनों होते , एक साथ बर्बादी ।
रोज लड़ाई झगड़ा होते , बनो नहीं तुम आदी ।।

टूटे घर परिवार सभी से , रिश्ते नाते छोड़े ।
ऐसी आदत वालो से अब , काहे रिश्ता जोड़े ।।

खाने को लाले पड़ जाते , बच्चे भूखे सोते  ।
जीना मुश्किल हो जाता है  , कलप कलप कर रोते ।।

मद्यपान अब करना छोड़ो,  सादगी को अपनाओ ।
मिट जायेगा क्लेश कलह सब , घर में खुशियाँ लाओ ।।
       
                         महेन्द्र देवांगन माटी
                         पंडरिया छत्तीसगढ़

नन्ही चुनमुन और ब्लू क्रेयॉन शरद कुमार श्रीवास्तव







मम्मी  ने  देखा  कि  चुनमुन स्कूल से  आकर , उससे बगैर  मिले या प्यार  किये ही कुछ  खोजने में  लग गई  थी  ।   मम्मी  को  आश्चर्य  हुआ  कि  ऐसा  तो  कभी  नहीं होता था   ।   चुनमुन स्कूल  से घर  आकर  सबसे  पहले  वह  अपनी  मां  से  अवश्य  मिलती  है ।   मम्मी  कौतुहल-वश चुनमुन के  कमरे  में  गई।  मम्मी  को  वहाँ  देखकर चुनमुन तुरन्त  बोलने लगी  कि  मम्मी  मेरा ब्लू  रंग  का  क्रेयान कहीं  नहीं  मिल  रहा  है  ।   आज  टीचर  जी ने  सबके  सामने मुझे  बहुत  डाँटा  था ।  वो कह रहीं  थीं  कि  तुम  अपना  सब सामान  फेंकती  रहती हो ।    मम्मी  कल ही  तो  मैंने उससे   पेंटिंग  की  थी और  पेटिंग  के  बाद   वह  कहाँ चला  गया  पता  नहीं चल रहा  है इसी लिए  मै अपने  कमरे में  तलाश  कर  रही  हूँ ।   यह  सुनकर  मम्मी  बोली कि  कितनी  बार  तुम्हें  समझाया  है  कि  अपना सब सामान  संभाल  कर रखो और  इस्तेमाल  करने  के बाद  उसे  फिर  अपनी  जगह  पर  रख  दो   लेकिन  तुम  सुनती कहाँ हो।   तुम्हारी  मैम  ने  ठीक ही  तुम्हें  डाँटा  है ।   यह सुनकर  चुनमुन बोली मम्मी  अब मै  समझ गई  हूँ ।   मै अब अपना सब सामान  ठीक  जगह  रखूंगी  और  इस्तेमाल करने  के  बाद   उसे  फिर  सही  जगह  पर  रखूँगी  ।   मैं  आपसे  प्रामिस करती हूँ ।    नन्ही  चुनमुन की यह बात   सुनकर  मम्मी  मुस्करायी ।  वह बोली,  यह लो तुम्हारा  ब्लू क्रेयान  !  अब  सब  सामान  ठीक  से  रखना ।   सबेरे  तुम्हारे  स्कूल  जाने  के  बाद   काम वाली  आन्टी  ने कूड़े  वाली  बाल्टी  में  से निकाल  कर  यह ब्लू  क्रेयान मुझे  दिया था।    

चुनमुन  खुश  हो  गई  और  मम्मी  के  गले  से  लग गई ।  



          शरद  कुमार श्रीवास्तव 

चुटकुले : संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव




1  रामू  ट्रेन  में  पिछले डिब्बे  में  सफर कर रहा था कि  उस ट्रेन  को  पीछे  से  एक इंजन  ने  टक्कर मार दी ।  राजू ने शिकायत  पुस्तिका  में  लिखा  कि ट्रेन  में  कोई  आखिरी  डिब्बा  नहीं  होना  चाहिये  । अगर  आवश्यक  हो तो इसे बीच  में  होना चाहिये ।

2  एक डाक्टर  एक  आदमी  के  पीछे भाग  रहे  थे ।  लोगों ने  रोक  कर पूछा  तो डाक्टर  बोला यह आदमी  दिमाग़  का  ऑपरेशन  कराने  के लिए  आया  था  ।  बाल कटवाने के  बाद  भाग रहा है ।

3  शिक्षक  : बच्चो   दूध  न फटे इसके  लिए  क्या  करना चाहिए
एक  बच्चा   : ूूौसर उसे  पी लेना चाहिये ।

4  शिक्षक  छात्र  से : तूने  मेरा  दिमाग  खराब  कर दिया  है । अपने पिता  को  बुलाकर  लाना   मै तेरे  पिता  जी  से  मिलूंगा
छात्र  :  पिता  जी को नहीं  ताऊ को  लाऊंगा दिमाग  के  डाक्टर  ताऊ है पिताजी  नहीं

5 एक मेढक ने एक ज्योतिषी से अपना भविष्य पूछा
ज्योतिषी बोला इस सप्ताह तुम्हारा उद्धार होगा
मेढक खुश हो गया उसने पूछा कैसे?
ज्योतिषी बोला कालेज की बाइलाॅजी के प्रेक्टिकल के क्लास में ।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

बचपन : अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव









प्यारा बचपन   न्यारा बचपन

मैगी खा के ख़ुश होता बचपन

नटखट हरकतों से लुभाता बचपन

सब को हर्षित करता यह बचपन

बचपन की हरकतों को देखो

रोटी दाल देख मुँह बनाता बचपन

सबका बचपन फ़िर से लौट आये

पचपन को भी बचपन फिर आये

मैगी देख के ललचाता पचपन

फिर भी बड़प्पन दिखा के न खाता पचपन























अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

सृजन करें ( लावणी छंद ). : रचना महेन्द्र देवांगन माटी





नई सृजन की बेला आई , आओ कुछ निर्माण करें ।
आगे बढ़ते जायें हम सब , भारत माँ का नाम करें ।।

 कदम रुके मत बाधाओं में  , संकट से हम नहीं डरें ।
लक्ष्य साध कर बढ़ते जाओ , मन में अपना धीर धरे ।।

करें खोज विज्ञान जगत में  , छू लें चाँद सितारों को ।
 सृजन करें ऐसे हम साथी  , माने सब उपकारों को ।।

मिटे गरीबी गाँवों के सब , ऐसे कोई सृजन करें ।
हाथों में हो काम सभी के,  भूखों से अब नहीं मरे ।।

पढ़ लिखकर सब बढ़ते जायें , जग में ऊँचा नाम करें ।
भेदभाव को छोड़ साथियों  , नहीं किसी से कभी डरें ।।


महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

बुधवार, 6 नवंबर 2019

प्लास्टिक छोड़ो : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"





प्लास्टिक को छोडो सब,देशी पत्तल अपनाओ।
डिस्पोजल को फेको सब,कागज का थैला बनाओ।।

गोबर खाद का उपयोग करो, पर्यावरण को स्वच्छ बनाओ।
माटी से बर्तन बनाओ,कचरा को मत फैलाओ।।

फल फूल और पत्ती, सबको तुम उपयोग में लाओ।
कूड़ा कर्कट छिलके को,गड्ढा बनाकर दफ़नाओ।।

छोड़ विदेशी चीजों को , मिट्टी का दीप जलाओ ।
भारत को खुशहाल बनाओ ,स्वच्छता को अपनाओ।।


                                         प्रिया देवांगन "प्रियू"
                                         पंडरिया छत्तीसगढ़

शामू 4 शरद कुमार श्रीवास्तव






अभी तक
शामू एक भिखारी का बेटा है और वह अपनी दादी के साथ रहता है । दूसरे बच्चो के साथ वह कचड़ा प्लास्टिक, प्लास्टिक बैग कूड़े से बीनता है । उसका पिता प्रत्येक सप्ताहांत में आता है । एक बार उसका पिता उसको पढने का सपना दिखाता है शामू अपने पिता के साथ स्कूल के लिये गया था । स्कूल के बाहर खड़े गार्ड ने उन्हें रोका और बोला कि अंदर कहाँ जा रहे हो। साफ़ सुथरे अच्छे कपडे पहन कर स्कूल में आना। अगले सप्ताह एक नये उत्साह के साथ शामू, बिहारी के लाये जूते कपडे पहन कर अपने पिता के साथ स्कूल गया। गार्ड ने उसे स्कूल के अंदर जाने से फिर रोक दिया। बिहारी निराश हो कर शामू से बोला चल यहाँ से चल पढना तेरी किस्मत मे नहीं है । दादी उसे फिर आगे बढ़ने के रास्ते सुझाती है । लेकिन साथ के बच्चे उसे फिर पुरानी प्लास्टिक पन्नी लोहा खोजने के लिए लगा देते है । इन वस्तुओं को बीनते हुए वह एक गैरेज के बाहर पडे कचडे में लोहा बीनने लगता है । तभी गैरेज के वर्कर उसे पकड़ लेते हैं ।
आगे पढ़िए
थोड़ी देरमें उस गैरेज के वर्कर आ गये थे। गैरेज के मालिक ने कहा कि इसे कौन लड़का जानता है। सब चुप थे तब एक लड़का बोला मैं जानता हूँ। ये बिहारी नाम के एक भिखारी का बेटा है। मालिक बोला तब तो जरूर चोरी कर रहा होगा । इन लोगों से मेहनत तो की नहीं जाती है। शामू गरम होकर बोला बाबू हम भिखारी जरूर हैं लेकिन चोर नहीं हैं। हमें कोई काम नहीं देता है तब भीख माँगने के आलावा और क्या रास्ता रह जाता है। हम चंदू भैय्या के लिए पुरानी पन्नी , प्लास्टिक कचड़ा-प्लास्टिक और अब कचड़ा- लोहा जमा करते हैं इसी में दो पैसे हमे मिल जाते हैं। हमसे कोई मजदूरी भी नहीं कराता है। इतना कह कर वह रोने लगा। उस गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे। शामू की बात सुन कर कुछ द्रवित हो गए। उस दिन इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का नहीं आ रहा था। वह लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था। गैरेज में एक हेल्पर की जरूरत थी। इशरत मियाँ ने शामू से पूछा कि काम करोगे? शामू ने तुरंत हाँ कर दी और इशरत ने उसे अपने गैराज मे हेल्पर के काम पर रख लिया।
पाठकगण नाराज हो रहे हैं कि एक तरफ देश में चाइल्ड लेबर के विरुद्ध आवाज़ उठाने की मुहीम चल रही है और दूसरी ओर शामू को पढ़ाई की सुविधा ना दिला कर उसे गैरेज में नौकरी करने के लिये भेज रहे हैं। देखिये मै भी चाइल्ड लेबर एब्यूज के विरुद्ध में आवाज़ उठाने वालों का पक्षधर हूँ । हमारा फर्ज है कि हम उन सभी बच्चों के लिए उपयुक्त शिक्षा की व्यवस्था कर सकें, जिनके माँ बाप उनके लिए उचित व्यवस्था नहीं कर सकते । लेकिन हकीकत की दुनिया में वास्तविकता कुछ और है । मै ऐसे चन्द बच्चों को जानता हूँ। जिन्होंने बहुत परिश्रम से पूरे जुनून से पढाई लिखाई की थी । लेकिन समुचित शिक्षा पूरी करने के बाद भी कोई उपयुक्त नौकरी / काम नहीं पा सके । वे अभी भी घरो में झाड़ू पोछा कर रहे हैं । कुछ तो वह भी नहीं कर पा रहे हैं । तालीमी शिक्षा उन्हें शर्म की जंजीर मे जकड़ कर रोटी से अलग रख रही है। वो किताबी शिक्षा किस काम की जो गरीब को दो वक्त की रोटी भी नहीं दिला पाये । अपंग अलग बना दे। आपका बहुमूल्य समय नहीं लेते हुए हम कहानी को आगे बढ़ाते हैं।
शामू अपने हँसमुख स्वभाव और भोलेपन के कारण सब लोगों का चहेता बन गया । उसे मेहनत काफी करनी पडती थी । घन चलाना पड़ता था । गाड़ियों के जैक लगाकर पहियो को निकालना लगाना पड़ता था । रिंच पाना टूल्स सब पहिचानना और मिस्त्री द्वारा मांगे जाने पर उन्हे देना आदि उसके काम थे । कुछ ही दिनो मे गैरेज के टूल्स औज़ार आदि के नाम का पता हो गया था। इस नये काम से बिहारी और शामू की दादी भी खुश थी । महीने में कुछ रुपये हाथों में आ जाते थे और शामू काम भी सीख रहा था।
शामू को यद्यपि अक्षरों का क्रमबद्ध तरीके से ज्ञान नही था । परन्तु उसकी चेष्टाएँ जारी थीं। साथ में काम करने वाले लड़कों ने उसे अक्षर ज्ञान करा दिया था। यह इशरत भाई की कृपा और आज्ञा से हुआ था। खाने की छुट्टी में एक लड़का राधे ने उसको अक्षर ज्ञान कराया ऐसा उसने शामू के बार बार अनुरोध किये जाने पर किया था। उसके बदले में शामू दादी के हाथ की बनी रोटी खिलाता था। शामू अक्षरों को मिला कर आवाज के हिसाब से पढ़ना लिखना सीख रहा था। जीवन ढर्रे पर आ गया था। दादी ने उसे सिखाया कि जो भी काम करो मेहनत और लगन से करो। इशरत भाई को उसने कई बार ग्राहक के छूटे रुपए- पैसे जो गाडी में मिलते थे वो ला कर देता था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे।।

शरद कुमार श्रीवास्तव 


शाही हज्जाम ( बारबर) शरद कुमार श्रीवास्तव






एक राजा था उसके सिर पर एक सींघ जैसी कोई चीज उग आई थी राजा को बड़ी शर्म महसूस हुई कि जब लोग इस सींघ के बारे जानेगे तो उसे जानवर समझेंगे. रानी तो उसका साथ ही छोड़ देगी. राजा ने इस बात को छुपाने के लिए  अपने बाल कई महीने तक नहीं कटवाऐ. राज पुरोहित ने जब देखा कि राजा ने काफी दिनो से बाल नहीं कटवाए है तो उसने राजा से कहा महाराज आप के सलोने चेहरे पर यह घास की तरह बड़े बड़े बाल बड़  मनहूसियत पैदाकर रहे है. राज्य पर कोइ विपत्ती आ स कती है अतः उससे बचने के लिये अपने बाल कटवा लीजिये.
जब दरबार के और लोगों ने भी ऐसा ही कहा तो उन्होने शाही हज्जाम को बुलवाया और अकले मे उसको कड़ी चेतावनी दे दी कि अगर उनकी सींघ की बात किसी से कहा तो उसे भयंकर दंड मिलेगा.
शाही नाई ने राजा के बाल काट दिये. अब राजा  हर समय टोपी पहने रहता था।  लेकिन  उस नाई की एक खराब आदत थी कि वह अपने पेट मे कोई बात पचा नहीं पाता था. किसी न किसी के सामने वह बात उगल जरूर देता था. नाई की हालत खराब थी. बिना बात बताए उसका पेट फूला जा रहा था. वह न खा सकता था न पी सकता  था और न सो सकता था. वह बहुत कोशिश करके भी उस रहस्यमय बात को भुला नहीं सका. वह नदी के पास गया तो उसे डर लगा कहीं कोई मछली या मछुवारा या नदी के घाट का धोबी उसकी बात सुन लेगा और राजा को बता देगा तो उसे भयंकर दंड मिलेगा. वह खेतों मे गया तो वहाँ भी उसे डर लगा कि कहीं कोई किसान न सुन कर राजा से उसकी शिकायत कर दे. रहस्यमय बात को नहीं कह पाने पर उसका पेट फूलता ही जा रहा था. अन्त मे वह जंगल चला गया और उसने   एक बड़े पेड़ के तने मे बने एक बडे छेद मे मुँह डाल कर कहदिया कि राजा के सिर पर सींघ है. यह कहने के बाद वह बहुत हल्का अनुभव कर रहा था. जब शाही नाई घर आगया और अपने को बहुत ही सामान्य अनुभव कर रहा था.
उसी रात एक तूफान आया और वह बड़ा पेड गिर गया. बढाई ने उस पेड़ के बड़े छेद वाले हिस्से को काट कर उस पर चमडा मढ़वाकर एक खूब बढ़िया नगाड़ बनवाया. शीघ्र ही जब बहुत सारे लोगों के बीच जब वह नगाड़ा बजाया गया तो उस नगाड़े के बजाने पर विचित्र सी धुन मे चिल्लाकर नगाडा बोला राजा के सिर पर सीघ है. किन ने कहा किन ने कहा? शाही हज्जाम ने. नगाड़ा ने हर बार यही बात जब दोहराई . राजा को पत चल गया. राजा ने शाही हज्जाम को बुवाया और पूछा कि जब मेरी यह बात जो तुम्हे छोड़ किसी को नहीं पता थी तो नगाडे को क़ैसे पता चला है. शाही हज्जाम ने राजा के सामने रोरो कर अपना बुरा हाल कर लिया और क्षमा माँगी तब राजा ने उसे क्षमा कर दिया. राजा को पता चल चुका था कि कोई रहस्य क तक रहस्य मय रह सकता है जब तक वह स्वयं से किसी और को नहीं कहता है.


                                 शरद कुमार  श्रीवास्तव