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मंगलवार, 29 सितंबर 2020

रिश्तों का मोल : प्रिया देवांगन प्रियू की बालकथा





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एक गाँव मे दो भाई रहते थे। राजू और रामू दोनों बहुत ही पक्के व सच्चे मित्र थे । दोनों भाई साथ साथ सब काम करते । गाँव वाले बोलते थे इन दोनों भाई हमेशा साथ ही रहते हैं। दोनों साथ में स्कूल जाते । खेलने कूदने जाते। और दोनों एक साथ बड़े भी हुये। दोनों की उम्र काम करने की हो गयी। दोनों सच्चे व ईमानदार आदमी थे। दोनों शहर जा कर काम ढूंढ लिये । रामू और राजू को एक कंपनी में काम मिला ।इस बात का दोनों के माता - पिता को बहुत खुशी हुई कि आज के युग मे दोनों भाई में कितना प्रेम है। अब भी दोनों साथ रहते थे और काम मे जाते थे। दोनों की शादी भी हो गयी । राजू और रामू एक ही जगह घर बनाकर रहने लगे। राजू ओवर टाइम करता था इसलिये उसके पास ज्यादा पैसे आने लगे । और रामू एक ही बार काम करता था तो सिर्फ तनख्वा के ही रुपय मिलते थे। धीरे धीरे राजू को पैसे का घमंड होने लगा । कि मेरे पास ज्यादा पैसे है मैं बहुत ही अमीर आदमी बन गया हूँ। रामू को इस बात का पता चला तो राजू को बहुत समझाया कि देखो भाई पैसे का घमंड करना छोड़ दो। और सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को अच्छे से निभाओ पैसा हमेशा काम नही आता ।रिश्तेदार ही काम आते हैं। राजू रामू से बहस करना शुरू कर दिया। बोला आजकल पैसा ही सब कुछ हैं रामू तू क्या समझेगा तू तो आज भी गरीब है और देख मेरे को मै कितना अमीर इंसान बन गया हूं। राजू , रामू और सभी रिश्तेदारों से दूर हो गया । एक दिन अचानक राजू का तबियत बिगड़ने लगा। उसको केंसर हो गया था। इलाज में सभी पैसे खत्म हो चुके थे। तभी अचानक राजू को रामू की याद आई।और अपनी पत्नी से कहा रामू को फोन लगाओ।उसकी पत्नी रामू को फोन लगाकर सब कुछ बताई।रामू तुरन्त वहाँ हॉस्पिटल में आया। और राजू की हालत देख कर दोनों गले मिलकर रोने लगे। तब राजू को समझ आ गया कि दोस्ती और रिश्तों का मोल क्या होता है। रामू , राजू को अच्छे से डॉक्टर के पास ले जा कर इलाज कराया और राजू की जान बचाया। तभी राजू , रामू के पैरों में गिर कर माफी माँगने लगा और कहने लगा कि जब तू समझाया उसी समय मैं समझ जाता तो अभी मेरी ये हालत नही होती मैं पैसे के मोह में पागल हो गया था। अब मेरे पास सिर्फ तू ही हैं रामू ऐसा कहकर दोनों रोने लगे। तभी रामू ने कहा ऐसा मत बोल भाई समय रहते तुझे गलती का एहसास हो गया और क्या चाहिये। फिर दोनों भाई पहले जैसे ही साथ साथ रहने लगे।


प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया

जिला - कबीरधाम

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


रविवार, 27 सितंबर 2020

चूं चूं चिड़िआ के बच्चे बालकथा शरद कुमार श्रीवास्तव






भयंकर जाड़े में, बेबी पीहू के घर के छज्जे में कबूतरी ने, गमलों के झुरमुट के बीच में, दो अंडे दिए थे। रोज सबेरे स्कूल जाने से पहले चुपचाप दबे पाँव पीहू कौतुहल वश अंडो को देखने जाती। स्कूल से आकर भी पहला काम होता था छज्जे पर जा कर अंडो को देखने जाना। हर बार कबूतरी अंडो के ऊपर बैठी मिलती थी। ऐसा कम ही मिलता कि कबूतरी वहाँ नहीं मिले एक दिन इत्फाक से कबूतरी वहाँ नहीं थी पीहू बढ़कर जैसे ही अंडो को उठाने बढ़ी कि नाना जी आ गए उन्होंने पीहू को रोक दिया। उन्होंने बेबी पीहू को गोद मे उठाते हुए बताया कि अंडो से बहुत जल्दी चूं चूं करते प्यार प्यारे चिड़िया के छोटे छोटे बच्चे निकलेंगे। इन्हे छूना भी मत।

पीहू का कौतुहल और बढ़ गया रोज स्कूल से आते ही छज्जे पर देखने जाती और बार बार नाना जी से चूं चूं करते चिड़िआ के बच्चों के बारे में पूछती थी नाना जी बच्चे कब अंडो से बाहर निकलेंगे ? नानाजी कहते तुम उधर जाना नहीं बहुत जल्दी ही बच्चे अंडे से बाहर निकाल आयेंगे चूं चूं करेंगे।

एक दिन अचानक पीहू के पापा जी छज्जे पर अखबार उठाने गए तो देखा कि अखबार वाले के जोर से अखबार फेंकने से लगे गमलो के कुछ पौधों की पत्तियां और डंडियां बुरी तरह से नष्ट हो गई हैं। वह बड़बड़ाते हुए अंदर आये। पीहू तब तक स्कूल जा चुकी थी। नाना जी ने जब सुना तो उनको चिड़िया के अण्डों का ख्याल आया। वे छज्जे पर गए तो देखा कि दोनों अंडे फूट गए थे कुछ पौधे तहस नहस हो गए थे, नाना जी कि आंखे नम हो गईं।

नन्ही पीहू के दिल को चूं चूं चिड़िआ के बच्चे के ना देख पाने का कष्ट वह खुद महसूस कर रहे थे। उन्होंने घर में इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। शायद कबूतरी और उसके अण्डों का प्रसंग घर के किसी व्यक्ति के प्राय: व्यस्त रहने के कारण, संज्ञान में नहीं था। सिर्फ नानाजी और पीहू के बीच ही था। पीहू के स्कूल से लौटने पर उसके पूछने पर नाना जी उसे बताया कि कबूतरी अपने चूं चूं करते बच्चे लेकर दूसरे घर चलीगई है। अजन्मे कबूतरी के बच्चों के बिछोह से नन्ही पीहू की आँखे भी नम हो गईं।।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

कहानी - एक शिक्षक के प्रयासों की 💐 कृष्ण कुमार वर्मा





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छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर जिले के तिल्दा ब्लाक से 35 किमी. दूर शासकीय हाई स्कूल भड़हा के एक ऐसे शिक्षक श्री कृष्ण कुमार वर्मा , जो कॅरोना संक्रमण प्रभाव के चलते शालाएं बन्द होने के बावजूद निरंतर ऑनलाइन और साप्ताहिक ऑफ़लाइन मोहल्ला क्लास के माध्यम से बच्चों के शिक्षा अध्ययन की गतिविधियों को निरन्तर आगे बढ़ा रहे । 
पढ़ाई तुंहर पारा के तहत सप्ताहिक मोहल्ला क्लास लेकर बच्चों की दुविधाओं को दूर जर , सतत मार्गदर्शन से एक बेहतरीन मिसाल पेश कर रहे है ।
साथ ही नवाचार गतिविधियों - डिजिटल स्टडी मैटेरियल्स , टी.एल.एम से लगभग 70 % पाठ्यक्रम पूरा करा चुके है । 
विद्यालय स्तर पर भी शिक्षा लाइब्रेरी , न्यूज़ रीडिंग कार्नर , कॉम्पिटिशन अड्डा , अंग्रेजी ग्रामर से सम्बंधित टीएलएम जैसे नवाचारों से बच्चों के शैक्षणिक और व्यक्तित्व विकास पर शानदार काम कर रहे हैं ।
व्याख्याता शिक्षक कृष्ण कुमार वर्मा जी अपने 7 साल के सेवावधि में ही कई उपलब्धियों से सम्मानित हो चुके हैं । जिसमें नवाचार के लिये कलेक्टर से सम्मान , उत्कृष्ट शिक्षक का पुरुस्कार प्रमुख हैं ।
इनके हौसले को सम्मान है 👍

शनिवार, 26 सितंबर 2020

बाल रचना,,(पिचकारी): वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी




    

कहाँ जा रहे  पप्पू राजा,

लेकर     के    पिचकारी,

मम्मी  ने पूछा  तेजी  से,

चलदी    कहाँ    सवारी।


तेज हुई गर्मी  के कारण,

झुलस   गई    फुलबारी,

देख भयंकर गर्मी सबने,

अपनी   हिम्मत    हारी।


बदन  तपेगा  पैर जलेंगे,

थकन    बढ़ेगी    न्यारी,

सूरज की गर्मी में  होती,

छाया    ही    सुखकारी।


घर से बाहर जाओगे तो,

पकड़ेगी           बीमारी,

सुई  लगेगी  तब रोओगे,

होगी     पीड़ा      भारी।


पप्पू बोला  मैं सूरज पर,

छोडूंगा          पिचकारी,

सारीआगबुझाके उसकी,

रख   दूँगा    इस   बारी।


आग बुझाने पानी डालो,

कहती     मेंम     हमारी,

डरती आग स्वयं पानीसे,

कहती    नानी     प्यारी।


इतना काहे डरती मम्मी,

सुन    लो  बात   हमारी,

सूरज भी  सॉरी  बोलेगा,

देख - देख     पिचकारी।

    



              वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

       दिनांक- 07/09/2020


माटी जीवन परिचय* (*आल्हा छंद*)

 



माटी के महिमा क्या गाऊँ ,  वो माटी के पुत्र महान।

जन्म बोरसी पावन धरती , महकाये वो स्वर्ग समान।।


माटी में ही खेले कूदे , माटी ही है उनकी शान।

मस्तक धूल लगाकर के वो , कदम बढ़ाते सीना तान।।


करे शासकिय  स्कूल पढ़ाई , और हुये बहुत होशियार।

शिक्षक के दिल जीत लिये थे , मिला सभी का उनको प्यार।।


कक्षा पंचम शुरू हुआ है , साहित्यिक कविता थे हाथ।

गीत कहानी लेखन करते , और प्रकाशित होते साथ।।


करे रायपुर स्नातक में वे , मिलजुल रहते दोस्तों साथ।

बच्चों को शिक्षा थे देते , और बढ़ाये अपना हाथ।।


किये विवाह  सजाये सपने , और बना उनका परिवार।

बेटी बेटा जन्म हुआ तब , उनको खुशियाँ मिले अपार।।


किये शासकिय प्राप्त नौकरी , साथ किये कविता का पाठ।

मिलकर गए सभी पंडरिया , रहते थे सब मिलकर ठाठ।।


पत्र पत्रिका किए प्रकाशन , मिला सभी उनको सम्मान।

कविता क्षेत्र बढ़े वो आगे , प्राप्त किये थे गुरु का ज्ञान।।


दो हजार सत्रह  में उनको, गुरुवर अरुण निगम का हाथ।

प्रारम्भ छंद का शुरू लेखनी , पूर्ण निभाये अपना साथ।


साहित्यिक में साथ चलाकर , दिये पूर्ण बेटी को ज्ञान।

दोनों मिलकर पढ़ते लिखते , और दिलाते थे सम्मान।।


छंद पचासों ज्ञानी बनकर , त्याग दिये वह अब संसार।

माटी पुत्र कहाथे थे वो , चले गये वे स्वर्ग सिधार।।





रचनाकार - 

प्रिया देवांगन *प्रियू*

(स्व.-महेंद्र देवांगन *माटी*)

पंडरिया

जिला - कबीरधाम

छत्तीसगढ़

बाल कविता - एक नन्हा सा भालू


 




एक छोटा , नन्हा सा भालू,बचपन से था बहुत ही चालू।
दादी माँ  का था  वो प्यारा,घूमता पूरे दिन भर आवारा।।

पढ़ने-लिखने से था कतराता,पिता से अपने बहुत घबराता।
मोबाइल का था,बहुत शौकीन,खेलता मोबाइल पर गेम तीन।।

लुडू से था बहुत ज्यादा प्यार,पबजी  खेलते  थे  तीन  यार।
साँप-सीढ़ी उसको बहुत भाता,खाना खाना भी वो भूल जाता।।

मम्मी  उसकी रहती थी परेशान,करता था वो उन्हें दिनभर हैरान।
इन खेलो के खिलाफ था उनका राजा,
बैन किये गेम,बजा दिया सबका बाजा।।

मम्मी पापा को भा गया उनका उपाय,
लगता अब बच्चे मोबाइल से दूर हो जाएं,




नीरज त्यागी `राज`
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल ‪09582488698‬
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001




तांका मालिका..वो गिलहरी..

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वो गिलहरी
कुतरती   रहती
कच्चे पक्के जो
फलते  अमरूद
मेरे   घर  बगीचे

उछलती  वो
कूदती    औ फाँदती
इस डाल से
उस        डाल ऊपर
कभी      नीचे घूमती

सुंदर     प्यारी
खूब थी वो न्यारी सी
चंचल    बड़ी
अपने     कूद फांद
से हर्षित  करती

उसका    होना
हमारे      घर  ख़ुशी
बच्चे      खुश  रहते
उछल     कूद
उसका    दौड़ना औ
पेड़ों       पर  चढ़ना

जब    न दिखी
कुछ    दिन तक वो
ढूँढा    बग़ीचा
मिला   मृत   शरीर
खाये    वो अवशेष

मन  में    दुख
अवसाद सा उमड़ा
वो           गिलहरी
प्यारी सी  गिलहरी
रह गयी   जो  यादें

(स्वरचित)

(समाप्त)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
कल्याण महाराष्ट्र 

बुधवार, 16 सितंबर 2020

हिन्दी अपनी मातृभाषा है भाषा मात्र नहीं है न








राघव ने  अपने दोस्तों को बताया कि गाँव से उनकी दादी जी आई हुई हैं. उन्हे अखबार पढने का बड़ा शौक है . इसलिये उसके घर मे हिन्दी का न्यूज पेपर आना शुरू हुआ है . कहानी की किताबे और हिन्दी के अखबार दादी जी पढ़ती रहती है. पेपर का एक एक कोना चाट डालती है तब जाकर उन्हे चैन मिलता है. कृष्णा बोला पर तुम तो पेपर कम पढ़ते हो तुम्हे इससे क्या मतलब है. हाँ भाई हमे तो अपनी पढ़ाई से ही फुरसत नहीं है हम पेपर पढ़ने के लिये समय ही नहीं मिलता है . लेकिन आज मैने हिन्दी के पेपर मे एक अजीब समाचार पढ़ा है इसी लिये लोकल  एडमिनिस्ट्रेशन पर मेरे मन में सवाल उठ रहे हैं कि वह ऐसा कैसे कर सकते हैं . उसने जेब से मुड़े हुए अखबार का टुकड़ा निकाला जिस पर लिखा था "रामपुर मे रामस्वरूप ने चोरी की फलस्वरूप पकड़ा गया"।  यह कैसी नाइन्साफी है चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाय. राघव के मित्र कृष्णा ने भी इस बात पर बहुत आश्चर्य जताया और राघव की हाँ मे हाँ मिलाई ।   वह बोला हाँ यार यह तो बड़ी खराब बात है . उनके एक मित्र जर्नालिस्ट थे न्यूज पेपर मे उनके लेख छपते थे वे दोनो उसके पास गये उन्हें भी अखबार वह  कोना दिखाया. वह मित्र बोला यार कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ किया होगा तभी फलस्वरूप पकड़ा गया है.  लेकिन तुम्हे इससे क्या लेना देना है. राघव को वाकई कुछ लेना देना नही था
राघव घर लौट कर दादी जी से कहा दादी जी आप यह कैसा अखबार पढ़ती हैं उसमे तो सब उल्टा- सीधा लिखा रहता है. दादी जी आपके पेपर मे तो लिखा है रामस्वरूप ने चोरी की फलस्वरूप पकड़ा गया. दादी जी बोली ठीक तो है इसमे गलत बात क्या है ? राघव बोंला, गलत् नहीं है तो क्या है ,चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाय. .नहीं बेटा रामस्वरूप ने चोरी की इसके फल मे वह पकड़ा गया यह मतलब है।   राघव दादी की बातों को सुन आश्चर्य से उन्हे देखता रहा . दादी बोली तुम्हारी अंग्रेजी शिक्षा का कमाल है जिसका तुम लोग बहुत ख्याल रखते हो परन्तु अपनी मात्रभाषा के प्रति बहुत उदासीन हो जाते हो. अभी दो चार दिन पहले तुम्हारा दोस्त चित्त रंजन गुप्ता आया था।  तुम्हारी छोटी बेटी से बोला कि कह दो सी आर गुप्ता आये है. तुम्हारी बेटी ने तोतली आवाज मे चिल्लांकर तुम्हे बताया था कोई सियार कुत्ता आये हैं तब गुप्ता जी का चेहरा देखने लायक था।।
भवदीय



शरद कुमार श्रीवास्तव 

बीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना : सड़ जाएंगे दांत तुम्हारे






सड़  जाएंगे  दांत   तुम्हारे
ज्यादा   मीठा  मत  खाना
दर्द   करेगा,  मुँह   सूजेगा
बहुत     पड़ेगा   पछताना।

नींद  नहीं  आएगी  तुमको
मुश्किल   होगा   सो  पाना
टॉफी,चॉकलेट का तुम पर
यही      लगेगा     जुर्माना।

जब भी मीठा दूध पियो तो
दाँत  साफ   करके   आना
कोई फिर कुछ दे खाने को
लेकिन कुछ भी मत खाना।

बच्चो कुछ पाने की खातिर
कुछ  तो  पड़ता   है  खोना
पिज्जा, बर्गर, टॉफी सबसे
कहना  पड़ता  है, अब  ना।

अच्छे बच्चे  सभी बड़ों  का
सदा     मानते   हैं    कहना
तभी  हमेशा   सुंदर  दिखते
लगते  घर  भर  का  गहना।

टीना,  टीनू,   तरु,   हिमानी
पंकज  असमी  और   मोना 
मोती   जैसे  दांतों  के   संग
तुम   खुलकर  के  मुस्काना।

     

                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                   मुरादाबाद/उ,प्र,
       मो0---   9719275453
       दिनांक-  24/08/2020

श्रद्धांजलि :महेन्द्र सिंह देवांगन माटी को




  • नाना की पिटारी बहुत दुख के साथ सूचित करता है कि आप के लोकप्रिय कवि महेन्द्र सिंह देवांगन का देहांत हो गया है पूरा 'नाना की पिटारी' का परिवार अपनी भावभीनी 

श्रद्धांजलि बच्चों के प्रिय कवि दिवंगत महेन्द्र सिंह देवांगन को असामयिक लगभग 51 वर्ष की आयु में 16 अगस्त 2020 को ब्रह्मलोक गमन पर दे रहा है दिवंगत देवांगन छत्तीसगढ़की धधरती पर हिन्दी जगत में एक चमकता हुआ सितारा थे।  हम उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं भगवान उनके परिवार को इस क्षति को सहने की शक्ति प्रदान करे।



माटी जी की सुपुत्री कुमारी प्रिया देवांगन *प्रियू* के द्वारा दी गई श्रद्धांजलि की पंक्तियाँ नीचे दी जा रही है


*पापा की यादें*
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याद आती है आपकी पापा ,
कविता आपकी गाती हूँ।
छत्तीसगढ़ के *माटी* पुत्र ,
मैं अपना शीश झुकाती हूँ।

राजिम में है जन्म लिये ,
माटी पुत्र कहलाते हो।
स्वयं कविता लिख कर पापा ,
जन जन को सुनाते हो।।

मिलते हो आप जब किसी से,
उसके दिल में बस जाते हो।
कहाँ चले गए आप पापा ,
हर पल याद आते हो।।





















प्रिया देवांगन *प्रियू*
पंडरिया
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

हिंदी,,: हिंदी दिवस पर विशेष : रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी





सबकी बड़ी  बहन है हिंदी,
सच्ची सरल  कहन है हिंदी।
        ----------------
घर-घर अक्षर ज्ञान  बांटती,
पाखंडों   की  जडें  छांटती,
हर भाषा को गले लगा कर,
खुशी-खुशी सम्मान बांटती,
प्रेम  पगे  पावन  भावों   से,
महका हुआ सहन  है हिंदी।
सबकी बड़ी बहन---------

जो  भी  इससे  दूर  भागता,
कभीन उसका वक्त जागता,
अपने घर  का द्वार बंद कर,
अंग्रेज़ी  से   शरण   माँगता,
अंतर्मन   से   देती   सबको,
ही  आशीष  गहन  है  हिंदी।
सबकी बड़ी बहन----------

बच्चे को 'माँ 'शब्द सिखाती,
हर भटके को  राह  दिखाती,
जननी   सारी  भाषाओं  की,
हिंदी   है,  सबको  बतलाती,
कोटिक  देवों  की  वाणी  में,
होता  हुआ   हवन  है  हिंदी।
सबकी बड़ी बहन----------

हिंदी   से  नफरत  करते  हो,
माँ  से तनिक नहीं  डरते  हो,
अन्य  विदेशी  भाषाओं   की,
गागर क्यों सिर पर  रखते हो?
गीतों, भजनों ,कविताओं का,
सबका  श्रेष्ठ  चयन  है  हिंदी।
सबकी बड़ी बहन-----------

आओ नमन  करें  हिंदी  को,
पूजें  इस  माँ  की  बिंदी  को,
प्रतिदिन हिंदीदिवस मनाकर,
दें  सम्मान  सतत  हिंदी  को,
लिखने -पढ़ने  का  गढने का,
करती  भार  वहन   है  हिंदी।
         -------------------
      💐💐💐💐💐

                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                   मुरादाबाद/उ,प्र,
         फोन-   9719275453
      दिनांक--  13/09/2020

लौट आओ पापा: प्रिया देवांगन "प्रियू"की रचना





उंगली पकड़ के चलना आपने मुझे सिखाया।
छोटी सी चोट लगने पर आपने मुझे उठाया।।
खेल खेल में पढ़ना लिखना सिखाया।
हर परेशानियों का सामना करना बताया।।
कहा खो गए पापा आप ------------।
इतनी भी क्या जल्दी थी दूर जाने की पापा।
बहुत कुछ बचा है आपसे ज्ञान पाने की पापा।।
मेरी हर गलती को माफ कौन करेगा।
मेरी हर ख्वाइस पूरी कौन करेगा।।
कदम से कदम मिलाकर चलना मुझे सिखाया।
बेटी बेटा एक समान कभी फर्क नही कराया।।
क्यों चले गए इतने दूर हमशे पापा।
कहा खो गए पापा आप-----------।।
जल्दी से लौट आओ न पापा।
जल्दी से लौट आओ न पापा।।



           प्रिया देवांगन "प्रियू"
           पंडरिया
           जिला - कबीरधाम
            छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com


दादू का चश्मा : प्रभूदयाल श्रीवास्तव



   

यह दादू का चश्मा है।
इसमें छुपा करिश्मा है।
इसे लगा लो तो मेंढक,
दिखता हाथी जितना है।




  प्रभूदया ल  श्रीवास्तव


शेर का बुखार । रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी






जंगल के  राजा को आया
इतना      तेज       बुखार
आंखें लाल  नाक से पानी
छीकें        हुईं       हज़ार
दौड़े - दौड़े   गए  जानवर
औषधिपति     के     द्वार
हाल बताकर कहा  देखने
चलिए      लेकर      कार।

नाम शेर का सुना हाथ  से
छुटे       सब       औज़ार
चेहरा देख सभी ने उनको
समझाया      सौ      बार
बच   जाएंगे   तो  दे  देंगे
दौलत      तुम्हें     अपार
चलिए श्रीमन  देर होरही
पिछड़    रहा     उपचार।

मास्क लगा,पहने दस्ताने
होकर     कार       सवार
डरते-डरते  पहुंचे   भैया
राजा        के      दरबार
पास  बैठके राजा जीका
नापा      तुरत     बुखार
बोले  सुई  लगानी  होगी
इनको    अबकी     बार।

सांस फूलते देख शेर की
करने      लगे      विचार
यह तो कोरोना है इसकी
दवा       नहीं       तैयार
ज़ोर ज़ोरसे  लगे चीखने
भागो      भागो      यार
जान बचानी है तो रहना
घरके     अंदर       यार।
       

           

















   वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                    मुरादाबाद/उ,प्र
          मो0-   9719275453
          

बंधन (ताटंक छंद) महेन्द्र देवांगन माटी की रचना






जनम जनम का बंधन है ये, हर पल साथ निभायेंगे।
कुछ भी संकट आये हम पर , कभी नहीं घबरायेंगे।।

गठबंधन है सात जनम का, ये ना खेल तमाशा है ।
सुख दुख दोनों साथ निभाये, अपने मन की आशा है।।

प्रेम प्यार के इस बंधन को, भूल नहीं अब पायेंगे।
जनम जनम का बंधन है ये, हर पल साथ निभायेंगे।।



                   महेन्द्र देवांगन "माटी"
                   प्रेषक - (पुत्री - प्रिया देवांगन "प्रियू")
                   पंडरिया
                   जिला - कबीरधाम
                   छत्तीसगढ़

"बोली की अदला-बदली" बाल रचना श्रीमती अंजू जैन गुप्ता




गुजरात  के चिड़ियाघर में बहुत सारे जानवर रहते थे जैसे-बिल्ली, घोड़ा, कुत्ता, बकरी, साँप और बतख आदि। वहाँ जगह - जगह से लोग उन्हें देखने आते थे। एक दिन गुड़िया रानी अपनी मम्मी के साथ चिड़ियाघर देखने गई ,जैसे ही वह बिल्ली के पास जाती है बिल्ली हिनहिनाना शुरू कर देती है वह कहती है नेह -नेह(neigh), ये सुनते ही गुड़िया रानी जोर से हँसने लगती है और कहती है," मौसी-मौसी ये तो घोड़े की बोली है", तुम क्यों  बोल रही हो? बिल्ली तभी घोड़े से कहती है, " भैया -भैया ज़रा तुम बोल कर दिखाओ" ,तो घोड़ा बोलता है,





म्याऊँ-मयाऊँ ये सुनते ही गुड़िया रानी फिर हसँ देती है अब बिल्ली मौसी परेशान-हैरान होकर कहती है "कि गुड़िया रानी,गुडिया रानी तुम ही कुछ करो न ! ये सब सही करो न तब गुड़िया रानी कहती है "गिल्ली-गिल्ली छू,बिल्ली की बोली वापस आ जा तू" ,और ये कहते ही उसकी बोली वापस आ जातीहै । तभी घोड़ा भी कहता है कि गुड़िया रानी ,गुडिया रानी मेरी भी मदद करो न और गुड़िया कहती है अच्छा मैं कुछ करती हूँ   और वह फिर से कहती है "गिल्ली-गिल्ली छू घोड़े की बोली वापस आ जा तू "और उसकी बोली वापस आ जातीहै। फिर माँ कहती है , " चलो गुड़िया रानी , अब आगे चलते है। " और गुड़िया कहती है , " हाँ माँ , चलो-चलो अब मुझे बकरी और कुत्ते से मिलने जाना है।

 " पर ये क्या ! बकरी भौं-भौं करने लगती है। अब गुड़िया रानी फिर से हसँ देती है और कहती है , " बकरी-बकरी ये तो कुते की बोली है।  तुम क्यों बोल रही हो? " बकरी परेशान- हैरान होकर कहती है , " गुड़िया रानी तुम ही अब कुछ करो न ये सब देखो न क्या हो गया। " तब गुड़िया रानी कहती है, " हाँ-हाँ मैं कुछ करती हूँ। " और गुड़िया रानी फिर से कहती है,  " गिल्ली-गिल्ली छू , बकरी की बोली वापस आ जा तू। " और बकरी की बोली वापस आ जाती है। अब कुत्ता आता है और वह गुड़िया रानी को देखते ही मैंह-मैंह करने लगता है और कहता है, " गुड़िया रानी , गुड़िया रानी मेरी बोली भी वापस ला दो न प्लीज़। " और गुड़िया रानी फिर से कहती है, " गिल्ली-गिल्ली छू कुत्ते की बोली वापस आ जा तू। " और फिर कुत्ते की बोली वापस आ जाती है। अब माँ कहती है , " चलो बेटा जल्दी से घर चलते है। तुम्हारे पापा दफ्तर से आने वाले है। " गुड़िया रानी कहती है, " माँ बस थोड़ी देर और। एक बार साँप और बतख से भी मिल लेते है। " माँ कहती है , " अच्छा बेटी चलो और वे दोनों साँप के पास पहुँच जाते है।

जैसे ही साँप के पास पहुँचते है साँप quack -quack करने लगता है उसकी बोली सुनते ही गुड़िया रानी ज़ोर  से हँसने लगती है गुड़िया रानी को हँसते देख साँप को गुस्सा आने लगता  है वह कहता है अरे!बच्ची तुम मुझसे डरती नही हो,तुम्हे पता है कि मैं कितना जहरीला और खतरनाक हूँ ये सुनते ही गुड़िया रानी ज़ोर से हँस देती है और कहती है," साँप दादा  पहले अपनी बोली तो वापस पाओ,तुम तो बतख की बोली बोल रहे हो"।ये सुनते ही साँप हैरान- परेशान हो जाता है और कहता है," गुड़िया रानी अब तुम ही कुछ करो न",तब गुड़िया कहती है अच्छा-अच्छा दादा परेशान मत होना मैं कुछ करती हूँ और वह फिर से कहती है "गिल्ली-गिल्ली छू साँप की बोली वापस आ जा तू ",और साँप की बोली वापस आ जाती है,तभी वहाँ बतख भी आ जाती है और वह हिस स स हिस स स करना शुरू कर देती है और गुडिया को कहती है," गुड़िया रानी, गुड़िया रानी तुम्हे तो सबकी बोली पता है please मेरी भी बोली ठीक कर दो न", देखो ये तो साँप दादा की है,तब गुड़िया रानी फिर से कहती है,"गिल्ली-गिल्ली छू बतख की बोली वापस आ जा तू" और बतख की बोली quack -quack  वापस आ जाती है।
अब सब खुश हो जाते है और गुड़िया रानी को धन्यवाद् कहते है।
फिर माँ कहती है वाह!गुड़िया रानी तुम्हे तो सबकी बोली पता है कि -
बिल्ली म्याऊँ-म्याऊँ करती है,घोड़ा हिनहिनाता है,कुता भौ-भौ करता है,बकरी  मैंह-मैंह करती है,साँप हिस स स हिस स स करता है और बतख quack -quack  करती है।शाबश!my  sweetheart चलो,अब घर चलते है तुम्हारे पापा भी दफ्तर से घर आ गए होगें और गुड़िया कहती है हाँ माँ ,चलो -चलो मुझे पापा को भी ये सारी बातें बतानी  है।


          अंजू जैन गुप्ता
           गुरुग्राम









लघुकथा - 15 अगस्त पर माँ की आश








       




















पंकज की दादी 15 अगस्त की सुबह जल्दी से ही तैयार हो गयी थी।जैसा कि उसे मालूम था कि 15 अगस्त पर सभी टीवी के समाचार चैनलों पर भारत देश के सैनिकों को दिखाया जाता है।हर बार की तरह वह भी अपने पोते पंकज की एक झलक पाने के लिए टीवी के सामने बैठ गई। 65 साल की दादी को यह उम्मीद थी कि किसी ने किसी चैनल पर सैनिकों के इंटरव्यू के बीच में उसके फौजी पोते पंकज की झलक भी उसको दिखाई देगी और उसी इंतजार में उन्होंने सुबह से ही टीवी चला लिया।

          अचानक पंकज के पिता उनके कमरे में आए और उन्होंने अपनी मां की तरफ गुस्से से देखा और बिना कुछ कहे काफी गुस्से के साथ कमरे से बाहर निकल गए।पंकज की दादी का अभी पूरी तरह टीवी पर ही ध्यान था।कुछ समय बाद पंकज के पिता फिर कमरे में आए।इस बार अपनी मां से वह गुस्से से बोले क्या माँ तुम 26 जनवरी और 15 अगस्त पर टीवी चला कर बैठ जाती है।क्यों बार-बार भूल जाती हो कि तुम्हारा पोता पंकज दो साल पहले बॉर्डर पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो चुका है।

          यह कहते हुए पंकज के पिता की आँखों में आंसू आ गए और पंकज की दादी की आँखे भी काफी नम थी।लेकिन पंकज की दादी ने कहा बेटा मुझे टीवी पर जो भी सैनिक दिखाई देता है।मुझे उसमें अपना पोता ही दिखाई देता है और उन्होंने बड़े प्यार से अपने बेटे को गले से लगा लिया।इसके बाद माँ और बेटे दोनों ही नम आँखों से टीवी में आ रहे समाचार देखने लगे।





नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल ‪09582488698‬
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001

छन्न पकैया (कोरोना) : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






छन्न पकैया छन्न पकैया , आया है कोरोना
बच्चे बूढ़े घर में बैठे , शुरू हुआ है रोना।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , अपना मुँहूँ छुपाये।
बन्द हो गया आना जाना , दूरी सभी बनाये।।

छन्न पकैया छन्न पकैया ,गर्म पियो सब पानी।
करो नीम तुलसी का सेवन , इससे है जिनगानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , मुँह में मास्क लगाना।
कोरोना का काल चल रहा , सभी स्वच्छ अपनाना।

छन्न पकैया छन्न पकैया , घर का भोजन खाना।
दूध दही का सेवन करना ,तन को स्वस्थ बनाना।।




           प्रिया देवांगन *प्रियू*
           पंडरिया
          छत्तीसगढ़

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

सुबह सवेरे.. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव की प्रस्तुति







सुबह सवेरे खिड़की खोली
चिड़िया मीठी आवाज़ में बोली
उठो उठो हुआ सवेरा
सूरज ने है प्रकाश बिखेरा
पूरब में है आई लाली
चारो ओर है छाई हरियाली
तरह के फूल खिले हैं
तितली भँवरे दौड़ रहे हैं
इतना सब कुछ हो रहा है
भैया मेरे तू कहाँ सो रहा है
जरा बिस्तर से बाहर आओ
मुँह धोकर टूथब्रश घुमाओ
देखो मुँह से तुम्हारे बास आ रही
इसीलिये भी सब कलियाँ हँस रहीं
जल्दी आओ और बाग में खेलो
अच्छी सुबह का मज़ा तुम ले लो
दादा जी लान पर टहल रहे हैं
मजे मजे कुछ  गुनगुना रहे हैं
दादी गुनगुना पानी हैं पीती
तब उनकी तबियत ठीक रहती
मम्मी किचन में टिफ़िन बनाती
पापा को दफ़्तर के लिये जागती
देखो पापा उठकर हैं आये
देख अखबार दौड़ कर वो उठाये
उसमें आँखों को वे हैं गड़ाये
सुबह समाचार हेडिंग देख रहे हैं
सब अपने अपने कामों में लगे है
छोटी मुनियाँ है अभी भी सोई
रात रात भर जाग कर वो रोई
उसकी तबियत ठीक नहीं है
सर्दी जुक़ाम से परेशान हो रही
इधर उधर करवट वो बदल रही
दुनियाँ में अब हलचल है जारी
गयी बीत है लंबी रात 
अब काम धंधे की बारी


अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

रविवार, 6 सितंबर 2020

बाढ़": प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






प्रकृति का यही नियम है कि हर साल सभी जगहों पर बारिश होती है।. हर साल कही न कही बाढ़ जैसे समस्या उत्पन्न होती है। हर साल सुनने को मिलता है कि किसी का घर बाढ़ आने से बह गया। कही किसी के बच्चें बाढ़ आने से अपने - अपने माँ - बाप , भाई- बहन से बिछुड़ गए। अक्सर यही सब सुनने को मिलता है । मछुवारें लोग ज्यादा से ज्यादा नदी या समुद्र के किनारे घर या छोटी सी झोपड़ी बना के रहते हैं । तेज बारिश होने के कारण समुद्र में उफान आने के कारण बाढ़ में लोग बह जाते हैं। 
बारिश होने का इंतजार सभी लोग करते हैं।लेकिन जरूरत से ज्यादा बारिश हर लोगो को चिंताग्रस्त कर देता है। (मैं एक छोटी सी कहानी अपने लेख के द्वारा आप सभी को बताना चाहती हूँ)
जब से सावन लगा था तब से पानी का गिरना बंद हो गया था। मैं और मेरे पिता जी अक्सर कहा करते थे कि ये तो सावन नही गर्मी का दिन लग रहा है । बहुत ही धूप और गर्मी रहता था। सावन में कभी कभी हल्का हल्का ही बारिश होता था। सावन खत्म होने के बाद अगस्त के महीने की शुरुआत हुई । अच्छा खासा सभी का दिन निकल रहा था। कभी हल्की हल्की बारिश की फुहार तो कभी ठंडी ठंडी हवा तो कभी सौंधी सौंधी माटी की सुगंध हमेशा मैं और मेरे पिता जी इसका आनंद लेते थे। जब भी बारिश होती दरवाजे पर जा कर खड़े हो जाते और बारिश के पानी का मजा लेते थे। 16अगस्त का दिन था सुबह सुबह अचानक मेरे पिता जी का तबियत खराब होने लगा और हम सभी उसको हॉस्पिटल ले कर गए । जब हम लोगो को पता चला कि पापा जी नही रहे उस दिन से ले कर आज तक बहुत बारिश हो रही है।मानो आसमान भी रो रहा है। ऐसा लग रहा है  भगवान भी अपनी गलती पर अफसोश कर रहे है। *माटी* पुत्र को ले जाकर वह भी फूट फूट कर रो रहे हैं। अपने परिवार और अपने बच्चों से दूर कर के भगवान भीआँसू बहा रहें हैं  ।यहाँ के आस - पास के गाँव- शहर , नदी - तालाब सभी जगहों पर  बाढ़ आ गया है। पूरा गाँव - शहर पानी पानी हो गया है।





















प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम 
छत्तीसगढ़

गुटरगूँ : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना






रोज़  गुटरगूँ   करे  कबूतर
घर      छप्पर      अंगनाई
बैठ हाथ  पर दाना चुगकर
लेता         है       अंगड़ाई।

     
एक-एक  दाने  की खातिर
सबसे       करी       लड़ाई
सारा  समय गया  लड़ने में
भूख    नहीं     मिट    पाई
बैठ गया  दड़वे  में  जाकर
भूखे        रात       बिताई।
रोज़ गुटरगूँ--------------

बेमतलब  गुस्सा  करने  में
क्या    रक्खा    है     भाई
लाख टके की बात सभीने
आकर       उसे      बताई
छीना-झपटी पागलपन  है
नहीं       कोई      चतुराई।
रोज़ गुटरगूँ--------------

लिखा हुआ  दाने -दाने पर
नाम      सभी का      भाई
बड़े नसीबों से  मिलती  है
ज्वार,       बाजरा,     राई
खुदखाओ खानेदो सबको
इसमें        नहीं      बुराई।
रोज़ गुटरगूँ--------------

स्वयं  कबूतर  की पत्नी ने
उसको     कसम    दिलाई
नहीं करोगे  गुस्सा सुन लो
कहती       हूँ       सच्चाई
सिर्फ एकता  में बसती  है
घर   भर    की    अच्छाई
रोज़ गुटरगूँ-------------

तुरत कबूतर को पत्नी की
बात    समझ    में    आई
सबके  साथ गुटरगूँ  करके
जी   भर    खुशी    मनाई
आसमान  में ऊंचे उड़कर
कलाबाजियां          खाईं।
रोज़ गुटरगूँ



                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                    मुरादाबाद/उ,प्र,
                    9719275453
           


मंदिर जैसी माँ : रचना प्रभुदयाल श्रीवास्तव





सुबह खुद चार पर उठकर,
हमें माँ ने जगाया है|
कठिन प्रश्नों के हल क्या हैं,
बड़े ढंग से बताया है|

किताबें क्या रखें कितनी रखें,
हम आज बस्ते में,
सलीके से हमारे बेग को ,
माँ ने जमाया है|

बनाई चाय अदरक की,
परांठे भी बनाये हैं|
हमारे लंच पेकिट को,
करीने से सजाया है|


हमारे जन्म दिन पर आज खुद,
माँ ने बगीचे में|
बड़ा सुंदर सलोना सा ,
हरा पौधा लगाया है|

फरिश्तों ने धरा पर,
प्रेम करुणा और ममता को|
मिलाकर माँ सरीखा दिव्य,
एक मंदिर बनाया है|


                    प्रभूदयाल श्रीवास्तव 


चिड़ियारानी : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बाल रचना



 
चिड़िया रानी  दावत खाने
मिलकर     साथ     चलेंगे
काली  कोयल   का न्योता
दिल   से  स्वीकार   करेंगे।
         ----------------

वहाँ   मिलेंगे  तोता - मैना
बत्तख      और     कबूतर
डैक  बजेगा  डांस   करेंगे
सारे    उछल -उछल   कर
मोटी  मुर्गी   के  बतलाओ
कैसे          पैर       हिलेंगे।
चिड़िया रानी-------------


               


 
मोर सजीले  पंख खोलकर
सुंदर       डांस       करेगा
पूरे मन  से  दौड़ - दौड़कर
सबमें       जोश      भरेगा
चलो हाथ में हाथ डालकर
हम     भी    तो    मटकेंगे।
चिड़िया रानी-------------

चिड़िया बोली  नहीं जानते
कोरोना      फैला          है
दूरी   रखकर  बातें  करना
नहले     पर     दहला    है
दोनों  हाथों को  साबुन  से
मल-मल      कर    धोएंगे।
चिड़िया रानी-------------

कौए राजा  काँव-काँव कर
सबसे        ही        बोलेंगे
दूध,  जलेबी  और  मिठाई
के       ढक्कन      खोलेंगे
लेकिन  हमतो  ठंडाई  को
बाय    -    बाय     बोलेंगे।
चिड़िया रानी-------------

समय कीमती होता है यह
समझो    चिड़िया     रानी
जो भी करना है कर डालो
ओढ़ो        चूनर      धानी
समय बीतने पर दावत  में
बोलो       क्या       पाएंगे।
चिड़िया रानी-------------

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                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                     मुरादाबाद/उ,प्र,
                     9719275453