ब्लॉग आर्काइव

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

सुबह सवेरे.. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव की प्रस्तुति







सुबह सवेरे खिड़की खोली
चिड़िया मीठी आवाज़ में बोली
उठो उठो हुआ सवेरा
सूरज ने है प्रकाश बिखेरा
पूरब में है आई लाली
चारो ओर है छाई हरियाली
तरह के फूल खिले हैं
तितली भँवरे दौड़ रहे हैं
इतना सब कुछ हो रहा है
भैया मेरे तू कहाँ सो रहा है
जरा बिस्तर से बाहर आओ
मुँह धोकर टूथब्रश घुमाओ
देखो मुँह से तुम्हारे बास आ रही
इसीलिये भी सब कलियाँ हँस रहीं
जल्दी आओ और बाग में खेलो
अच्छी सुबह का मज़ा तुम ले लो
दादा जी लान पर टहल रहे हैं
मजे मजे कुछ  गुनगुना रहे हैं
दादी गुनगुना पानी हैं पीती
तब उनकी तबियत ठीक रहती
मम्मी किचन में टिफ़िन बनाती
पापा को दफ़्तर के लिये जागती
देखो पापा उठकर हैं आये
देख अखबार दौड़ कर वो उठाये
उसमें आँखों को वे हैं गड़ाये
सुबह समाचार हेडिंग देख रहे हैं
सब अपने अपने कामों में लगे है
छोटी मुनियाँ है अभी भी सोई
रात रात भर जाग कर वो रोई
उसकी तबियत ठीक नहीं है
सर्दी जुक़ाम से परेशान हो रही
इधर उधर करवट वो बदल रही
दुनियाँ में अब हलचल है जारी
गयी बीत है लंबी रात 
अब काम धंधे की बारी


अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें