माटी के महिमा क्या गाऊँ , वो माटी के पुत्र महान।
जन्म बोरसी पावन धरती , महकाये वो स्वर्ग समान।।
माटी में ही खेले कूदे , माटी ही है उनकी शान।
मस्तक धूल लगाकर के वो , कदम बढ़ाते सीना तान।।
करे शासकिय स्कूल पढ़ाई , और हुये बहुत होशियार।
शिक्षक के दिल जीत लिये थे , मिला सभी का उनको प्यार।।
कक्षा पंचम शुरू हुआ है , साहित्यिक कविता थे हाथ।
गीत कहानी लेखन करते , और प्रकाशित होते साथ।।
करे रायपुर स्नातक में वे , मिलजुल रहते दोस्तों साथ।
बच्चों को शिक्षा थे देते , और बढ़ाये अपना हाथ।।
किये विवाह सजाये सपने , और बना उनका परिवार।
बेटी बेटा जन्म हुआ तब , उनको खुशियाँ मिले अपार।।
किये शासकिय प्राप्त नौकरी , साथ किये कविता का पाठ।
मिलकर गए सभी पंडरिया , रहते थे सब मिलकर ठाठ।।
पत्र पत्रिका किए प्रकाशन , मिला सभी उनको सम्मान।
कविता क्षेत्र बढ़े वो आगे , प्राप्त किये थे गुरु का ज्ञान।।
दो हजार सत्रह में उनको, गुरुवर अरुण निगम का हाथ।
प्रारम्भ छंद का शुरू लेखनी , पूर्ण निभाये अपना साथ।
साहित्यिक में साथ चलाकर , दिये पूर्ण बेटी को ज्ञान।
दोनों मिलकर पढ़ते लिखते , और दिलाते थे सम्मान।।
छंद पचासों ज्ञानी बनकर , त्याग दिये वह अब संसार।
माटी पुत्र कहाथे थे वो , चले गये वे स्वर्ग सिधार।।
रचनाकार -
प्रिया देवांगन *प्रियू*
(स्व.-महेंद्र देवांगन *माटी*)
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
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