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शनिवार, 26 सितंबर 2020

माटी जीवन परिचय* (*आल्हा छंद*)

 



माटी के महिमा क्या गाऊँ ,  वो माटी के पुत्र महान।

जन्म बोरसी पावन धरती , महकाये वो स्वर्ग समान।।


माटी में ही खेले कूदे , माटी ही है उनकी शान।

मस्तक धूल लगाकर के वो , कदम बढ़ाते सीना तान।।


करे शासकिय  स्कूल पढ़ाई , और हुये बहुत होशियार।

शिक्षक के दिल जीत लिये थे , मिला सभी का उनको प्यार।।


कक्षा पंचम शुरू हुआ है , साहित्यिक कविता थे हाथ।

गीत कहानी लेखन करते , और प्रकाशित होते साथ।।


करे रायपुर स्नातक में वे , मिलजुल रहते दोस्तों साथ।

बच्चों को शिक्षा थे देते , और बढ़ाये अपना हाथ।।


किये विवाह  सजाये सपने , और बना उनका परिवार।

बेटी बेटा जन्म हुआ तब , उनको खुशियाँ मिले अपार।।


किये शासकिय प्राप्त नौकरी , साथ किये कविता का पाठ।

मिलकर गए सभी पंडरिया , रहते थे सब मिलकर ठाठ।।


पत्र पत्रिका किए प्रकाशन , मिला सभी उनको सम्मान।

कविता क्षेत्र बढ़े वो आगे , प्राप्त किये थे गुरु का ज्ञान।।


दो हजार सत्रह  में उनको, गुरुवर अरुण निगम का हाथ।

प्रारम्भ छंद का शुरू लेखनी , पूर्ण निभाये अपना साथ।


साहित्यिक में साथ चलाकर , दिये पूर्ण बेटी को ज्ञान।

दोनों मिलकर पढ़ते लिखते , और दिलाते थे सम्मान।।


छंद पचासों ज्ञानी बनकर , त्याग दिये वह अब संसार।

माटी पुत्र कहाथे थे वो , चले गये वे स्वर्ग सिधार।।





रचनाकार - 

प्रिया देवांगन *प्रियू*

(स्व.-महेंद्र देवांगन *माटी*)

पंडरिया

जिला - कबीरधाम

छत्तीसगढ़

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