रोज़ गुटरगूँ करे कबूतर
घर छप्पर अंगनाई
बैठ हाथ पर दाना चुगकर
लेता है अंगड़ाई।
एक-एक दाने की खातिर
सबसे करी लड़ाई
सारा समय गया लड़ने में
भूख नहीं मिट पाई
बैठ गया दड़वे में जाकर
भूखे रात बिताई।
रोज़ गुटरगूँ--------------
बेमतलब गुस्सा करने में
क्या रक्खा है भाई
लाख टके की बात सभीने
आकर उसे बताई
छीना-झपटी पागलपन है
नहीं कोई चतुराई।
रोज़ गुटरगूँ--------------
लिखा हुआ दाने -दाने पर
नाम सभी का भाई
बड़े नसीबों से मिलती है
ज्वार, बाजरा, राई
खुदखाओ खानेदो सबको
इसमें नहीं बुराई।
रोज़ गुटरगूँ--------------
स्वयं कबूतर की पत्नी ने
उसको कसम दिलाई
नहीं करोगे गुस्सा सुन लो
कहती हूँ सच्चाई
सिर्फ एकता में बसती है
घर भर की अच्छाई
रोज़ गुटरगूँ-------------
तुरत कबूतर को पत्नी की
बात समझ में आई
सबके साथ गुटरगूँ करके
जी भर खुशी मनाई
आसमान में ऊंचे उड़कर
कलाबाजियां खाईं।
रोज़ गुटरगूँ
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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