भयंकर जाड़े में, बेबी पीहू के घर के छज्जे में कबूतरी ने, गमलों के झुरमुट के बीच में, दो अंडे दिए थे। रोज सबेरे स्कूल जाने से पहले चुपचाप दबे पाँव पीहू कौतुहल वश अंडो को देखने जाती। स्कूल से आकर भी पहला काम होता था छज्जे पर जा कर अंडो को देखने जाना। हर बार कबूतरी अंडो के ऊपर बैठी मिलती थी। ऐसा कम ही मिलता कि कबूतरी वहाँ नहीं मिले एक दिन इत्फाक से कबूतरी वहाँ नहीं थी पीहू बढ़कर जैसे ही अंडो को उठाने बढ़ी कि नाना जी आ गए उन्होंने पीहू को रोक दिया। उन्होंने बेबी पीहू को गोद मे उठाते हुए बताया कि अंडो से बहुत जल्दी चूं चूं करते प्यार प्यारे चिड़िया के छोटे छोटे बच्चे निकलेंगे। इन्हे छूना भी मत।
पीहू का कौतुहल और बढ़ गया रोज स्कूल से आते ही छज्जे पर देखने जाती और बार बार नाना जी से चूं चूं करते चिड़िआ के बच्चों के बारे में पूछती थी नाना जी बच्चे कब अंडो से बाहर निकलेंगे ? नानाजी कहते तुम उधर जाना नहीं बहुत जल्दी ही बच्चे अंडे से बाहर निकाल आयेंगे चूं चूं करेंगे।
एक दिन अचानक पीहू के पापा जी छज्जे पर अखबार उठाने गए तो देखा कि अखबार वाले के जोर से अखबार फेंकने से लगे गमलो के कुछ पौधों की पत्तियां और डंडियां बुरी तरह से नष्ट हो गई हैं। वह बड़बड़ाते हुए अंदर आये। पीहू तब तक स्कूल जा चुकी थी। नाना जी ने जब सुना तो उनको चिड़िया के अण्डों का ख्याल आया। वे छज्जे पर गए तो देखा कि दोनों अंडे फूट गए थे कुछ पौधे तहस नहस हो गए थे, नाना जी कि आंखे नम हो गईं।
नन्ही पीहू के दिल को चूं चूं चिड़िआ के बच्चे के ना देख पाने का कष्ट वह खुद महसूस कर रहे थे। उन्होंने घर में इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। शायद कबूतरी और उसके अण्डों का प्रसंग घर के किसी व्यक्ति के प्राय: व्यस्त रहने के कारण, संज्ञान में नहीं था। सिर्फ नानाजी और पीहू के बीच ही था। पीहू के स्कूल से लौटने पर उसके पूछने पर नाना जी उसे बताया कि कबूतरी अपने चूं चूं करते बच्चे लेकर दूसरे घर चलीगई है। अजन्मे कबूतरी के बच्चों के बिछोह से नन्ही पीहू की आँखे भी नम हो गईं।।
शरद कुमार श्रीवास्तव
Bahut khoob...bahut pyari balkatha
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