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बुधवार, 26 मई 2021

नदियाँ: महेन्द्र सिंह देवांगन की रचना

 





कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने ।
मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।।
सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती ।
सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।।
खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते ।
उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।।
स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती ।
विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।।
गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा ।
भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।।
विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते ।
माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।।
शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ ।
पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।।


रचना:-
महेन्द्र देवांगन *माटी* 
 प्रेषक -(सुपुत्री प्रिया देवांगन *प्रियू*)
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

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