बेवजह पीछे पड़ा है कोरोना,
जान लेने पर अड़ा है कोरोना,
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छींक,खांसी, ताप में रहता बसा,
कमज़ोरकीगर्दन मेंही फंदाकसा,
हैभीड़,मेला जनसभाओं में छुपा,
या शहर की तंग गलियों में घुसा,
हो रहे अनुमान भी सारे गलत,
कहाँ से आकर मरा है कोरोना।
कब सुरक्षित हैं कोरोना वीर भी,
पुलिस वाले या स्वयं रणधीर भी,
दे रहे प्राणों की जो आहुतियां,
भूलकर घरवार की सब पीर भी,
मौत पर ताली बजाकर खुशी से,
खूब खुलकर हंस रहा है कोरोना।
कब कहाँ पर यह झपट्टा मार दे,
हंसती-गाती जिंदगी में ज्वार दे,
कहाँ तक कोई यहां बचकर रहे,
मास्क, दूरी ही सुखी घरवार दे,
रंग बदलकर चाल चलने की यहां,
ताक में बैठा हुआ है कोरोना।
जोभी आयाहै वह निश्चित जाएगा,
करोना तू भी नहीं बच पाएगा,
सात टीके भेद देंगे जिस्म को,
बूटियों का असर भी पड़ जाएगा,
भाग ले अब भी समय है बावरे,
समय पूरा हो चुका है कोरोना,
है सभी का वक्त निर्धारित यहां,
समय पर है सांस आधारित यहां,
फिरभला तुझसेडरें हमकिसलिए,
तू हमें ले चल जहां चाहे वहाँ,
भाग जा क्या कर रहा है कोरोना।
बेवजह पीछे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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