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गुरुवार, 6 मई 2021

मंद बयार वीणा श्रीवास्तव की अनुपम रचना

 



ब्रह्मलीन  वीणा श्रीवास्तव 



ग्रीष्म काल की तपती गर्मी सब पर कहर ढा रही थी ! चारों ओर सब सूनसान पड़ा था  पूरा नीरवता का  वातावरण  दिखाई पड रहा था !  ऐसे में मंद-बयार, कल्लोल करती नदी,नाले, तालाब, पहाड़ों से टकराती, मदहोश हो इठ्लाती बल-खाती बह रही थी! जिसे भी वह स्पर्श करती  वही खुश होकर उसके गुण गान किये बिना नही रहता था! चुपके-चुपके वह अपने भावुक मन को नियन्त्रित करती हुई सबकी  बातें सुनती जा रही थी !अपनी शीतलता, लहराने तथा चंचलता की प्रशंसा सुनकर वह गदगद हो उठती थी उसका जी चाहता था कि वह वहीं खडी होकर सबका मन मोह ले!  परन्तु वायु कब तक स्थिर रह सकती थी ?  आखिर वह मन मार कर चल दी!रह रह कर  लोगों की बातें और तारीफें सुन कर उसका मन गुदगुदाने लगता था! चलते- चलते  वह सोंच रही थी कि लोगों पर  उसके कितने अहसान हैं वह लोगों  को कितना आराम देती है !  उसके मन मे घमन्ड उपजा और वह सोचने लगी कि लोगों को तो उसे  पूजना चहिये एवं सर्वोच्च आसन  पर बैठाना चहिये!  इसी समय जब उसकी निगाहें पास  ही के वृक्ष पर लगे शहद की मक्खी के छत्ते पर गईं तो वह सन्न रह गई! उसने देखा कि पास ही मे दो लोग खडे हैं जिन्होंने छत्ते मे एक छेद कर दिया था और उसमे से रिस रिस कर शहद नीचे रखे  बर्तन मे गिर रहा था ! यह सब देख कर भी मधुमख्खियाँ उसी तन्मयता से अपने काम मे लगी हुई थीं !  उन्हे कोई चिन्ता नहीं  थी कि उनका शहद दूसरे लोग ले रहे हैं और उनके परिश्रम  के मीठे फल  का लाभ दूसरे लोग  उठा रहें हैं ! अपने जीवन की पूंजी को लुट्ते देख कर भी वे  दुखी या निराश नहीं थीं बल्कि वे गुनगुनाकर मस्त जीवन गुजार रही थीं ! यह देख कर बयार का मन आत्मग्लानि से भर गया उसने अपने आपको मधुमख्खियों के आगे बहुत तुच्छ पाया ! वह तुरन्त, एक ही झटके मे, उठ कर फिर से बहने लगी! कभी पेडों को चूमती कभी लोगों कि जुल्फों को सहला देती !  इसी तरह लहरा कर सायं-सूं का गीत  गाती आगे बढ रही थी मानों सबको खुश करने का ठेका उसी ने ले रखा  हो! एक छोटी सी घटना ने उसके जीवन का,  उसके बहने का,मतलब और मकसद ही बदल दिया था।

 वीना श्रीवास्तव

धर्मपत्नी  शरद कुमार श्रीवास्तव 


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