ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

महेन्द्र देवांगन "माटी" की रचना। : बैर भाव को छोड़ो



बैर भाव को छोड़ो प्यारे, हाथ से हाथ मिलाओ ।

चार दिन की जिन्दगी में, दुश्मनी मत निभाओ ।

क्या रखा है इस जीवन में, खुशियों से जीना सीखो ।

बनो सहारा एक दूजे का, तुम नया इतिहास लिखो ।

न होना निराश कभी तुम, मंजिल तुम्हे जरूर मिलेगी ।

अगर इरादा पक्का है तो, जरूर नया कोई गुल खिलेगी ।

माटी के इस जीवन को , सार्थक तुम करना सीखो ।

ऐसा कोई काम करो तुम, भीड़ भाड़ से हटकर दिखो ।




                      महेन्द्र देवांगन "माटी"

                     पंडरिया (कवर्धा )

                     छत्तीसगढ़ 

वाटसप नंबर 8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com



3 टिप्‍पणियां: