मनोज अपने पिता की तरह फुटबॉल का बहुत शौकीन था| उसके पिता अपने समय मे राष्ट्रीय पुरोधा ( चैम्पियन ) रह चुके थे| उसने भी मन मे ठान लिया था कि वह भी अपने पिता की तरह विश्व चैम्पियन बन के रहेगा|
लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था| एक दिन अभ्यास करते समय उसका दाहिना पैर बुरी तरह मुड़ गया| वह दर्द से कराहते हुए जमीन पर गिर पड़ा| सब साथियों ने उसे तुरत अस्पताल पहुंचाया|
भली भांति डाक्टरी परीक्षण के बाद पता चला कि उसके पैर मे हेयर लाइन फ्रैक्चर है और उसे ठीक होने में 3,4 महीने लगेंगे | यह सुनते ही उसका मनो बल टूट सा गया और दिल को बहुत ठेस पहुँची| पल भर के लिये वह होश खो बैठा|
लेकिन उसने खुद को संभाला और मन ही मन मे निश्चय किया कि वह खुद को इतना कमजोर नहीं होने देगा और
हर मुसीबत से लड़ेगा|
प्लास्टर कटने के बाद पैर का डाक्टरी परीक्षण हुआ| हड्डी तो जुड़ गई थी परंतु डाक्टर ने कहा कि पैर कमजोर होने की वजह से अब वह कभी फुटबॉल नहीं खेल पायेगा|
लेकिन मनोज को यह बात कैसे मंजूर होती?
ठीक होने के बाद मनोज ने फिर से धीरे धीरे अभ्यास करना शुरू कर दिया| धीरेधीरे पैरों मे ताकत आने लगी जिससे उसका मनोबल भी बढ़ने लगा|
डाक्टर भी उसका आत्मविश्वास और हौसला देखकर हैरान थे|
कुछ महीने मे वह बिल्कुल ठीक हो गया था| अब वह प्रतियोगिताओं मे हिस्सा लेने लगा था|
इन सब कारणों से उसके मनोबल मे और भी ज्यादा निखार आने लगा था| वह बहुत खुश था कि जो उसने सपने देखे थे उनके पूरा होने का वक्त नज़दीक आता दिखाई दे रहा था । उसकी लगन व बढ़ते आत्मविश्वास ने सारी बाधाओं को बहुत पीछे छोड. दिया था|
आखिर वह दिन आ ही गया जब उसका नाम अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी की श्रेणी मे गिना जाने लगा|
मनोज की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था|
उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति व बड़ों के आशीर्वाद ने उसे सफलता की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया| अगले साल वह फुटबॉल मे "सत्र का खिलाड़ी" चुना गया|
बच्चों सफलता उसी को मिलती है जो कड़ी मेहनत व लगन से अपने लक्ष्य को पूरा करने मे जुट जाता है|
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
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