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सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

मंजू श्रीवास्तव की प्रेरक बाल कथा : मजबूत मनोबल



   मनोज अपने पिता की तरह फुटबॉल का बहुत शौकीन था|   उसके पिता अपने समय मे राष्ट्रीय पुरोधा  ( चैम्पियन )   रह चुके थे|   उसने भी मन मे ठान लिया था कि वह भी अपने पिता की तरह विश्व चैम्पियन  बन के रहेगा|
     लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था| एक दिन अभ्यास करते समय उसका दाहिना पैर बुरी तरह मुड़ गया|  वह दर्द से कराहते हुए जमीन पर गिर पड़ा|  सब साथियों ने उसे तुरत अस्पताल पहुंचाया|
       भली भांति डाक्टरी परीक्षण के बाद  पता चला कि उसके पैर मे  हेयर लाइन  फ्रैक्चर  है और उसे  ठीक  होने में 3,4 महीने लगेंगे |  यह सुनते ही उसका मनो बल  टूट सा गया  और दिल को बहुत ठेस पहुँची|    पल भर के लिये वह  होश खो बैठा|
    लेकिन उसने  खुद को संभाला और मन ही मन मे निश्चय किया कि वह खुद को इतना कमजोर नहीं होने देगा और
हर मुसीबत से लड़ेगा| 
        प्लास्टर कटने के बाद पैर का डाक्टरी परीक्षण हुआ|   हड्डी तो जुड़ गई थी परंतु डाक्टर ने कहा कि पैर कमजोर होने की वजह से अब वह कभी फुटबॉल नहीं खेल पायेगा|
लेकिन मनोज को यह बात कैसे मंजूर होती? 
ठीक होने के बाद मनोज ने फिर से धीरे धीरे अभ्यास करना शुरू कर दिया|    धीरेधीरे पैरों मे ताकत आने लगी जिससे उसका मनोबल भी बढ़ने लगा|
   डाक्टर भी उसका आत्मविश्वास और हौसला देखकर हैरान थे|
कुछ महीने मे वह बिल्कुल ठीक हो गया था|   अब वह प्रतियोगिताओं मे हिस्सा लेने लगा था|
इन सब कारणों से उसके मनोबल मे और भी ज्यादा निखार आने लगा था|   वह बहुत खुश था कि जो उसने सपने देखे थे उनके पूरा होने का वक्त नज़दीक आता दिखाई दे रहा था ।   उसकी लगन व बढ़ते आत्मविश्वास ने सारी बाधाओं को बहुत पीछे छोड. दिया था|
     
    आखिर वह दिन आ ही गया जब उसका नाम अन्तर्राष्ट्रीय  खिलाड़ी की श्रेणी मे गिना जाने लगा|
मनोज की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था|
उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति व बड़ों के आशीर्वाद ने उसे सफलता की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया|  अगले साल वह फुटबॉल मे  "सत्र का खिलाड़ी"  चुना गया|

बच्चों सफलता  उसी को मिलती है जो कड़ी मेहनत व लगन से अपने लक्ष्य को पूरा करने मे जुट जाता है|

                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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