बच्चों आज तुम्हें बापू के जीवन की एक घटना बता रही हूँ |
बापू के आश्रम साबरमती मे जो नियम बनते थे , उसका पालन सभी को करना पड़ता था | बापू अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे,नियम पालन के पक्के थे |
भोजन के समय दो घंटी बजती थी | | सभी लोग अपनी अपनी जगह आकर बैठ जाते थे | दूसरी घंटी बजने के बाद तक जो नहीं आ पाया उसे दूसरी पंक्ति का इंन्तज़ार करना पड़ता था |
एक बार की बात है बापू समय से भोजन कक्ष तक पहुंच नहीं पाये | बहुत जरूरी काम कर रहे थे | कुछ देर बाद जब भोजन कक्ष पहुंचे तब तक भोजन मिलना बन्द हो गया था | कर्मचारी बापू का खाना कुटिया तक ले जाने की तैयारी कर रहे थे कि देखा बापू भोजनालय के बाहर नई पंक्ति के इंतज़ार में जाकर खड़े हो गये |
कर्मचारियों ने बापू से कहा ,आपका खाना आपकी कुटिया मे पहुँचा रहे हैं| आप लाइन मे क्यों खड़े हैं? बापू ने जवाब दिया, नहीं , जो गलती करेगा उसे दंड भी मिलेगा |मैने गलती की है और उसका दंड मुझे स्वीकार है | नियम सबके लिये बराबर हैं | नियम के आगे कोई छोटा बड़ा नहीं होता है |
यह कहकर बापू भोजन कक्ष के बाहर लगी पंक्ति मे खड़े हो गये और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे |
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बच्चों ,नियम का उचित व समय से पालन सभी समस्याओं का समधान है |
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
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