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शनिवार, 26 सितंबर 2020





तांका मालिका..वो गिलहरी..

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वो गिलहरी
कुतरती   रहती
कच्चे पक्के जो
फलते  अमरूद
मेरे   घर  बगीचे

उछलती  वो
कूदती    औ फाँदती
इस डाल से
उस        डाल ऊपर
कभी      नीचे घूमती

सुंदर     प्यारी
खूब थी वो न्यारी सी
चंचल    बड़ी
अपने     कूद फांद
से हर्षित  करती

उसका    होना
हमारे      घर  ख़ुशी
बच्चे      खुश  रहते
उछल     कूद
उसका    दौड़ना औ
पेड़ों       पर  चढ़ना

जब    न दिखी
कुछ    दिन तक वो
ढूँढा    बग़ीचा
मिला   मृत   शरीर
खाये    वो अवशेष

मन  में    दुख
अवसाद सा उमड़ा
वो           गिलहरी
प्यारी सी  गिलहरी
रह गयी   जो  यादें

(स्वरचित)

(समाप्त)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
कल्याण महाराष्ट्र 

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