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अम्मा कहती है जुगनू के,
लगी पेट में लाइट,
हो जाती जो पलमें मद्यम
होती पल में ब्राइट।
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दादी अम्मा आप बताओ,
क्या माँ सच कहती है,
नन्ही सी यह लाइट कैसे,
बिना तार जलती है,
बोलो अंधियारे से जुगनू,
करता कैसे फाइट।
कभीयहाँ करता उजियारा,
कभी वहाँ करता है,
सारी रात उड़ानें जुगनू,
मस्ती में भरता है,
नहीं बैठता थककर बोलो,
क्या लेता है डाइट।
दूर पेड़पर कभी चमकते,
लगते जड़े सितारे,
जलते-बुझते एक साथ ये,
लगते कितने प्यारे,
जैसे अम्मा आसमान में,
हौं चमकीली काइट।
सच में बया चिरैया लाती,
इनको पकड़ पकड़कर,
बल्ब सरीखा इन्हें लगाती,
घर की दीवारों पर,
हाँ, बेटे मैं झूठ न कहती,
बोलूँ हरदम राइट।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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