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बुधवार, 26 अप्रैल 2017

डॉ प्रभास्क पाठक का बालगीत : गीत बन जाता







सुनी कहानी नानी से 
दादी ने गीत सुनाया,
माँ की लोरी सुनकर ही
आँखों ने नींद चुराया  !
रोज सबेरे दादा जी 
सुंदर श्लोक सुनाते,
खा-पीकर अपने कंधे
नित खलिहान धुमाते !


पशु-पक्षियों,फूलों से 
परिचय होता रोज ,
बादल,बिजली,तारे देखा
करता नूतन खोज !
कभी सोचता पक्षी बन
करूँ हवा की सैर,
कभी सोचता फूल बनूँ
महकूँ जग में बिन वैर !
दादा-दादी ,नाना-नानी
बनते जाते एक कहानी,
मैं बन जाता गीत कहीं तो
चमन रचाता फिर मधुवाणी !

                              डॉ प्रभास्क पाठक 
                              रांची  झारखंड 

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