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मंगलवार, 6 जून 2017

अंजू निगम की कहानी : आम का पेड़




अतिन जहाँ रहता हैं| वहाँ हरियाली बसी हैं| पीपल, नीम,शरीफा,मीठी नीमऔर एक आम का पेड़|
    अतिन के पापा जब तबादले में यहाँ आये थे| तो ये सारे पेड़ पहले से डेरा जमाये थे| हर दूसरे साल आम लगते थे|अतिन ने पेड़ो पर लगे आम जिदंगी में पहली बार देखे थे|   बौर आने पर उसे अंचभा ही ही हूआ|
" अरे!!!!!! पापा देखो आम के पेड़ में फूल निकल आये हैं"| अतिन खुशी से चिल्लाया था|
   पापा ने तब अतिन को समझाया था कि इसे "बौर" कहते हैं| इसमें ही आम निकलेगे| अतिन के लिये ये नयी बात थी|
   
      स्कूल जाने से पहले वो रोज एक नजर आम के पेड़ पर डाल जाता|   इतने विशाल आम के पेड़ की वजह से सुबह घर चिड़ियों की चहचाहट से भरा रहता|  ऐसा नजारा अब तक बड़े शहर में पले-बढ़े अतिन के लियेे तो नयी बात थी|   प्रकृति के इतना करीब वो पहली बार आया था|  यहाँ का जीवन शहर के जीवन से अलग था| जिन पेड़ो के नाम अतिन ने सुने न थे|  वे सब यहाँ लगे थे|   अतिन खुश था यहाँ आकर|
    जब पेड़ में पहली बार अमिया उतरी तब अतिन की खुशी का ठिकाना न था|  कुछ दिन तो सब शांत बना रहा| पर जैसे-जैसे आमो ने बढ़ना शुरु किया| आम पर अपनी दावेदारी करने वाले भी बढ़ गये|   माँ सारे दिन झींकती रहती| आये दिन उनकी किसी न किसी से रोज झड़प हो जाती|
     जब माँ ने अतिन को "अपने" पेड़ का पहला आम खाने को दिया| तब उसे पहली बार उसे "अपने" बगीचे के आम का स्वाद मिला|
     इस आम के पेड़ की वजह से अतिन के खूब दोस्त बन गये थे|दोस्ती के चक्कर में अतिन ने सबको आम खिलाने का पक्का वायदा भी कर लिया|
   माँ खीजती रहती," आम के पेड़ से गिरी सूखी टहनियाँ, पत्तियाँ साफ करे हम और आम का मजा लुटने सब हाजिर|"
      इसी फेर में अतिन की मम्मी ने अब तक किसी से पक्की दोस्ती नहीं गांठी| जितने दोस्त बनेगे उतने मुँह हो जायेगे आम खाने के लिये|
   वाह रे आम की महिमा!!!!!
एक दिन जब माँ घर पर नहीं थी| अतिन के दोस्तो ने मौके का फायदा उठा पेड़ पर चढ़ आम तोड़ने की ठानी| पेड़ की सीधी चढा़ई थी कहीं कोई घुमाव नहीं| पर  दोस्त भी पक्के थे| उन्होनें अतिन को भी पेड़ पर चढ़ने को उकसाया| थोड़ा ना-नुकुर के बाद अतिन पेड़ पर चढ़ने को तैयार हो गया|
        किसी तरह ढेल-ढाल आधे रास्ते चढ़ गया| पर अब वो पीछे नहीं जा सकता  था| थोड़ी और ऊपर जा मोटी टहनियों पर पैर रख वो आसानी से पेड़ पर चढ़ गया|
    ऊँचाई पर बैठ उसने खुब मजे लिये| दोस्तो ने जम कर आम पर हाथ साफ किये| अतिन न न करता रह गया| चढ़ने को तो चढ़ गया था| पर उतरना तो दोस्तो के ही हाथ में था|
       अभी सब धमा-चौकड़ी मचा ही रहे थे कि अतिन की मम्मी वापस आ गई| आम के पेड़ पर बच्चो की ऐसी धमा-चौकड़ी से उनका पारा गरम हो गया| अतिन के सारे दोस्त तो माहिर थे पेड़ पर चढ़ने-उतरने में| सो वे सब अतिन को छोड़ उतर भागे| माँ के डर से अतिन ने जो जल्दी जल्दी में उतरने की कोशिश की तो वो अपने को संभाल न पाया और जोर से जमीन पर आ लगा|
     आम खाने का सारा फितुर हवा में बह गया| अगले तीन महीने अपनी टूटी टांग ले वो बिस्तर में पड़ा रहा|
    तीसरे साल पापा ने वो आम के पेड़ तो एक फल वाले को बेच दिया| आम के पकने तक वो पेड़ की रखवाली करता रहा| किसी को एक आम खावे को नहीं मिला| हाँ,  सारे आम उतारने के बाद वो एक पेटी आम की अतिन की माँ को पकड़ा गया|
   अतिन को आम की खुब चटास लग गयी हैं| और हो भी क्यों न!!!! फलो का राजा जो ठहरा|


                                   अंजू निगम
                                   इन्दौर 

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