ब्लॉग आर्काइव

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

हंस और मूर्ख कछुआ (पंचतंत्र की कथाओं पर आधारित






एक सरोवर के पास बसता था हंसों का जोड़ा
रहता वहीं एक कछुवाा जो बातूनी था थोड़ा
पड़ा अकाल भयंकर भैय्या सूखे ताल तलैया
कछुआ बोला हसों से छोड़ें सरोवर हम भैया

हंस बोले हम उड़ जाये पर तुम कैसे जाओगे
सूखे ताल मे बिना दाना पानी के मर जाओगे
भले हंस थे सूखे ताल मे कछुआ छोड़ न पाये
भाग दौड़कर जुगत लगानेे लकड़ी खोज लाये

दोनो हसों ने अपनी चोंच से पकड़ी थी लकड़ी
कहा कछुए को जोर से बीच मे पकडो लकड़ी
बात न करना तबतक मन्जिल जबतक न आए
समझदार तुम हो अब दादा तुम्हे कौन समझाऐ.

बीच राह मे कुछ बालकों ने की हसों की बड़ाई
कितना चतुर हंस का जोड़ा खूब जुगत लगाई
कछुआ लगा उनको यह अपनी चुगत बताने
जैसे ही मुँह खोला उसने गिरा वह चारों खाने


शरद कुमार श्रीवास्तव

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