मेरे गांव में दीपावली के दिन सूरन की सब्जी खाने की प्रथा थी। सूरन को जिमीकन्द या ओल भी बोलते हैं। आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है, कभी-कभी देशी सूरन भी मिल जाता है।
बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नहीं सुहाती थी, लेकिन चूँकि बनती यही थी तो खाना पड़ता था। तब मैं सोचता था कि लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी खुजली वाली सब्जी खिला रहे हैं। बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई।
सब्जियों में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। ऐसी मान्यता है, अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी सूरन की सब्जी खा लें तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पूरे साल फास्फोरस की कमी नहीं होगी।
मुझे नहीं पता कि यह परंपरा कब से चली आ रही है, लेकिन सोचिए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी।
धन्य हैं पूर्वज हमारे, जिन्होंने विज्ञान को परम्पराओं, रीतियों, रिवाजों, संस्कारों में पिरो दिया।
डा. पशुपति पाण्डेय
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