वाह रे कलिन्दर , लाल लाल दिखथे अंदर ।
बखरी मा फरे रहिथे , खाथे अब्बड़ बंदर ।
गरमी के दिन में, सबला बने सुहाथे ।
नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे ।
बड़े बड़े कलिन्दर हा , बेचाये बर आथे ।
छोटे बड़े सबो मनखे, बिसा के ले जाथे ।
लोग लइका सबो कोई, अब्बड़ मजा पाथे ।
रसा रहिथे भारी जी, मुँहू कान भर चुचवाथे ।
खाय के फायदा ला , डाक्टर तक बताथे ।
अब्बड़ बिटामिन मिलथे, बिमारी हा भगाथे ।
जादा कहूँ खाबे त , पेट हा तन जाथे ।
एक बार के जवइया ह, दू बार एक्की जाथे ।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
कलिन्दर = तरबूज
बखरी = बाड़ी
अब्बड़ = बहुत
नानचुक = छोटे से
मनखे = आदमी
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