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सोमवार, 26 नवंबर 2018

प्रिया देवांगन प्रियू की रचना :बचपन



















बचपन कितना सुहाना था  , सुबह होती स्कूल जाते ।
 थक कर आते , फिर भी खेलने जाते ।

न किसी का बोझ सहना , न किसी  पर बोझ थे हम
छोटी छोटी बातों में रोना , छोटी सी बातों में हँसते थे हम।

न रोने की वजह थी ,न हँसने का बहाना था
बारिश की फुहार से , खेलना अच्छा लगता था

कागज की नाव बना कर , कितने खुश हो जाते थे
बच्चों के संग मम्मी पापा, बच्चे बन जाते थे

थोड़ी सी बातों में रूठना, फिर सबका मनाना
कितना अच्छा लगता था।
न किसी की फिक्र थी , न किसी का गम था।

कहां गया वो बचपन हमारा , जिसमें खुशियों का खजाना था
बचपन कितना सुहाना था , बचपन कितना सुहाना था ।


प्रिया देवांगन " प्रियू"
 पंडरिया 
जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)


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