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रविवार, 16 दिसंबर 2018

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : नसीहत


 


एक बार एक समुद्री जहाज भयंकर तूफान मे फंस गया | काफी लोग मारे गये |  सिर्फ दो लोग बचे थे| बाप और बेटा | किसी तरह दोनों जन एक टापू पर पहुँच गये  | एक छोर पर बाप ,दूसरे छोर पर बेटा | प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई नाव या जहाज दिखाई दे तो उस पर  चढ़कर अपने घर पहुँचा जाय  |~
पिता और बेटे को भूख लगी| बेटा प्रार्थना करने लगा 'हे भगवन कुछ खाने को मिल जाय | थोड़ी देर में बेटा देखता क्या है ,एक वृक्ष  फलों से लदा है | उसकी खुशी का ठिकाना न था |
  दूसरे दिन वह अकेलापन महसूस कर रहा थ | उसने फिर भगवान से कहा ,कोई साथी मिल जाय तो सफर आराम से कट जाय  |
  थोड़ी देर बाद देखता क्या है कि एक लड़की  तैरती हुई उसी तरफ आ रही है | बेटे ने हाथ पकड़कर उसे ऊपर खींच लिया | अरे! ये तो हमारे जहाज वाली लड़की है| दोनों मे दोस्ती Rहो गई |
फिर उसने प्रार्थना की कि भगवान एक नाव  मिल जाय तो हम अपने घर चले जांयें |
  उसकी ये कामना भी पूरी हो गई | नाव आ गई |
उसने लड़की से कहा चलो हम चलें | लड़की ने पूछा क्या तुम अपने पिताजी को नहीं बुलाओगे ? बेटे ने कहा, नाव मे केवल दो ही लोग आ सकते हैं | लड़की ने कहा क्या तुम जानते हो तुम्हारी हर मनोकामना कैसे पूरी हुई?
तुम्हारे पिता हर समय तुम्हारी सलामती की दुआ करते रहे | तुम्हारी हर कामना पूरी हो, इसके लिये वो दिन रात प्रार्थना कर रहे थे |
जब तुम्हारा काम पूरा हो गया तो तुम उन्हें इस विपत्ति मे छोड़कर जा रहे हो? हर पिता की कामना होती है कि उसके बेटे की हर इच्छा पूरी हो |  | यह सुनकर बेटे की आँखों मे आंसू आ गये | पिता से माफी मांगी |
   नाव मे और लकड़ियाँ जोड़कर सबलोग एक साथ घर को चल दिये

           बच्चों यह बात हमेशा याद रखो कि माता पिता कष्ट सहकर अपने बच्चों की सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं |तुम्हारा फर्ज़ है कि उनका सम्मान करो और कोई कष्ट न दो |

























मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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