ऐनक पहने छड़ी घुमाते,
आए गर्धव राजा,
बैठ गए कुर्सी पर जाकर,
खाने को फल ताज़ा।
ककड़ी,फूट,कचरियाँ खाईं,
पिया मज़े से माज़ा,
गर्धव राग छेड़कर नाचे,
बजा बजाकर बाजा।
ढेंचू - ढेंचू करके तोड़ा,
कमरे का दरवाजा,
नाच - नाचकर मार दुलत्ती,
गिरा दिया सब खाजा।
तहस-नहस करडाला पलमें,
बिगड़ गया सब काजा,
दौड़ा-दौड़ा मालिक आया,
बोला थमजा राजा।
कान पकड़ मालिक ने फेरा,
डंडा मोटा - ताज़ा,
ढूंढ रहे कब से घरवाले,
कहकर राजा राजा।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
06/07/2021
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