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बुधवार, 16 नवंबर 2022

जनजातीयगौरव दिवस पर विशेष: बिरसा मुंडा झारखंड के जुझारू नेता की कहानी

  



वर्ष 1875 के अंत मे झारखंड  के खूंटी के एक  गाँव  मे आदिवासी समुदाय  मे उनके जुझारू नेता बिरसा मुंडा का जन्म  हुआ  था।  वर्ष 1894-95 मे भारत मे भीषण  अकाल पड़ा था ।  आदिवासियों ने उस समय की अंग्रेज सरकार से अकाल को देखते हुए लगानमाफी की मांग की थी ।   

इनकी जायज समस्या जल जमींन और जंगल से जुडी हुई है। अंग्रेजों के समय से ही ये प्रताडि़त रहे हैं । जंगल की संपत्ति सरकारी घोषित की गयी थी और जंगल के लोगों को जो वहां जंगल के उत्पादों का व्यवसाय करते थे जंगल की लकड़ियाँ काटते थे या जंगल की जमींन पर खेती करते थे उन्हें अपराधी घोषित कर दिया गया था  व्यापारी वर्ग भी इन पर हावी था। जंगल का सामान सस्ते मूल्यों पर खरीद कर बहुत अधिक मूल्यों में बेचता था। इनके घरेलू उत्पाद भी इन्ही को शहरों से बढे दामो में मिलते थे। उस समय बिरसा मुंडा  नामक क्रांतिकारी आदिवासी ने अंग्रेजो के इस कानून के विरोध में सशक्त आवाज़ उठाई थी तब इस कानून में ढिलाई हुई थी। इसी कारण  झारखंड  प्रदेश  और  उसके आसपास  के लोग  उन्हे आज भी देवतातुल्य समझते है


शरद कुमार श्रीवास्तव 

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