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शनिवार, 26 नवंबर 2022

बर्लिन और बर्लिन की दीवार : शरद कुमार श्रीवास्तव

 





बर्लिन जर्मनी की राज धानी है दिनांक   10.11.2022 को इस राष्ट्र की इसे पश्चिमी जर्मनी और जर्मनी गणराज्य को विभाजित करने वाली दीवार को ढहाने की कहानी की 31 वीं वर्षगांठ थी  

दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति एक सैनिक सन्धि से हुई जिसमे जर्मनी 1949 मे दो भागो मे बंट गया।   जिसमे पश्चिम जर्मिनी अमेरिका द्वारा समर्थित राष्ट्र बना तथा पूर्वी जर्मिनी एक सोवियत संघ द्वारा समर्थित राज्य था ।  दोनो राष्ट्रों मे पूर्वी  जर्मनी से बेहतर काम के अवसरो की तलाश मे भारी पालायन प्रारम्भ हुआ ।  पूर्वी जर्मनी सोवियत संघ  समर्थित गणतन्त्र मे पश्चिमी जर्मनी के लोग आकर पूर्वी जर्मनी के खर्चे पर फ्री मे उच्च शिक्षा लेकर पश्चिमी जर्मनी भाग जाते थे।  दूसरी समस्या गुप्तचरी जोरो पर थी और उसपर कोई अंकुश नही लग पा रहा था।  इस पर वर्ष 1962 मे रातोरात पहले कंटीले तार लगाए गये फिर 45 किलोमीटर लम्बी दीवार खड़ी की गई।  इसके लिये तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति निकिता खुर्शचेव की स्वीकृति थी ।  इस दीवार के बनने से पालायन काफी कम हो गया लेकिन इस दीवार के दोनो पार जर्मनी निवासियों के अपने ही लोग थे वे रातों रात अलग हो गये थे।  अतः इस दीवार के बनने का खूब विरोध हुआ।  लोग चोरीछुपे दीवार पार करने की कोशिश करते और  पकड़े जाते थे । कुछ मामलों मे लोगों ने जाने भी गंवाईं ।  कभी दीवार से छलांग लगाकर कभी गुब्बारे मे तो कभी सुरगं बनाकर दीवार पार करने की कोशिश होती थी।   परन्तु सुरक्षा व्यवस्था बहुत सुदृढ़ थी।   पैंतालीस किलोमीटर पर सेना की लगभग 90 चौकियाँ थी।  1989 मे सोवियत राष्ट्र की पकड़ ढीली पड़ी और दीवार के दोनो ओर के राष्ट्रों ने बर्लिन की दीवार उसके बनने के  लगभग 28 वर्षों बाद गिरा दी और वर्ष 1990  मे फिर दो महान जर्मन राष्ट्रों का आपस मे विलय हुआ ।    क्या हम अपने दिलों की दीवारे नहीं हटा सकते ?


शरद कुमार श्रीवास्तव 

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