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सोमवार, 6 मार्च 2017

डॉ प्रदीप शुक्ल की पुरस्कृत पुस्तक " गुल्लू का गांव " से रचना : जंगल में होली






 होली के इस शुभ अवसर पर

आज शेर ने सभा बुलाई 

सुनो सुनो सब जंगल वालों 

चिल्लाती है कोयल ताई



भरी सभा में किंग शेर ने 

अपना ये फरमान सुनाया 

रंग नहीं खेला जाएगा 

इस जंगल में अब से भाया 



पर होली में हम तो मालिक 

हरदम रंग खेलते आये 

बोल सामने खड़ा हो गया 

पलटू गदहा मुँह लटकाये



लाल लोमड़ी लच्छो बोली 

ठीक कह रहे हैं राजा जी 

मिलावटी रंगों से देखो 

मुझको लगी जान की बाजी 



कल्लू कौआ बोल पड़ा बस 

सच ही कहा लोमड़ी नानी 

रंग न कोई चढ़ता मुझ पर 

हो जाऊँ मैं पानी पानी 



हाथी बोला सही बात है 

पानी सब गंदा हो जाता 

कई दिनों तक गंदा पानी 

मुझसे पिया पिया ना जाता 



तभी उछल कर खड़ा हो गया 

रामभजन बन्दर का बच्चा 

होली में गर रंग न होंगे 

मुझको नहीं लगेगा अच्छा 



उसके पीछे खड़ी हो गई 

जंगल भर की बच्चा टोली 

धीरे धीरे चली शेरनी 

बीच सभा में आ कर बोली 



ऐसा करते हैं राजा जी 

सूखी होली हम खेलेंगे 

औ मिलावटी रंगों को हम 

फूलों के रँग से बदलेंगे 



सबने मिलकर फूल सुखा कर 

तरह तरह का रंग बनाया  

इस होली में सब ने खेला 

कोई तनिक नहीं घबराया.



                                 डॉ. प्रदीप शुक्ल
                                लखनऊ  

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