होली खेल रहा गुलमोहर
संग-संग नीम पलाश है,
बासंती गुल खिला रहा
महुआ चूने की आस है।
हुड़दंगी बच्चों की टोली
करती आई होली- होली,
सरपट भागा भागी करते
घर-घर खुशियों की ले झोली।
सूखी लकड़ी और डमारा
सजी होलिका झाड़ झंकारा,
लगी सत्य की चिनगारी जब
जली बुराई,दुख हारा सारा।
उधर गुलाब की कलियाँ चटकी
पीत, हरित,केशर गुलाल की,
धूल उड़ी मग- मग उमंग की
फाग चैत का कहता मन की।
डाॅ प्रभास्क।
रांची झारखंड
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