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मंगलवार, 25 मई 2021

भैंस-गाय की बहस : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बाल रचना

 



कहा  भैंस  ने  गैया  मुझसे,

बहस   कभी   मत   करना,

खाकर  पन्नी, कूड़ा  कचरा,

पेट      यहां     तू    भरना।

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शुद्ध  नीर,भूसा, चोकर तो,

नहीं      भाग्य    में      तेरे,

चना,बिनोला,खलचोकरतो,

बदा      भाग्य     में     मेरे,

दूर  खड़ी   ऐसे  खाने  की,

सिर्फ       सोचती    रहना।


मेरा  मालिक  मेरे तन  को,

शीशे        सा    चमकाता,

दुहकर  दूध तुझे गौपालक,

घरसे          दूर     भगाता,

तेरे  मालिक  को आता  है,

सिर्फ     दिखावा    करना।


मेरा मालिक  मुझे नित्य ही,

गुड़   और    तेल   पिलाता,

तेरा मालिक तुझको केवल,

सूखी        घास   खिलाता,

उसको नहीं अखरता कतई,

तेरा         जीना      मरना।


बहन बहुत मत शेखी मारो,

थोड़ा      चुपभी      जाओ,

मेरे  लाख गुणों का भी  तो,

वर्णन      सुनती      जाओ,

जो   बोलूँगी  सच   बोलूँगी,

झूठ    नहीं    कुछ  कहना।


मेरे  रोम  -  रोम  में  रहता,

सब     देवों    का      वास,

मेरी   पूजा    से   होता   है,

सबका     तन-मन     साफ,

बच्चो  व्यर्थ बहस  करने से,

होता         है        अपमान।

        


              वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                  

                      

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