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रविवार, 16 मई 2021

मजदूर" (कुण्डलिया)प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 




मजदूरी का काम है, करते प्रतिदिन काम।
बहे पसीना माथ से, मिले नहीं आराम।।
मिले नहीं आराम, हाथ छाले पड़ जाते।
सर्दी हो या ठंड, मेंहनत कर के खाते।।
परिवारों को देख, रहे सबकी मजबूरी।
कैसी हो हालात, करे फिर भी मजदूरी।।

कहते हैं मजदूर को, जग के हैं भगवान।
कर्म करें वो रात दिन, बने नेक इंसान।।
बने नेक इंसान, सभी के महल बनाते।
करते श्रम हर रोज, तभी तो रोटी खाते।।
धूप रहे या छाँव, बोझ सबके है सहते।
सुख दुख रहते साथ, कभी कुछ भी ना कहते।।

छाले पड़ते हाथ में, काँटे चुभते पाँव।
सहते कितनी मुश्किलें, बैठे  कभी न छाँव।।



बैठे कभी न छाँव, ठोकरे दर दर खाते।
रहती है मजबूर, नहीं दिखती हालाते।।
आँसू उनके देख, जुबाँ लग जाते ताले।
चलते नंगे पांँव, हाथ पड़ जाते छाले।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

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