शामू का पिता इस शहरके पास के कस्बे में एक रेलवे ओवरब्रिज के नीचे एक कपड़ा फैलाए बैठा रहता था। आने जाने वाले उसके बिछाए कपडे पर कुछ न कुछ पैसे डाल देते थे। वह किसी से कुछ मांगता नहीं था। यह उसे मालूम था कि मांगने से कुछ नहीं मिलता है। धरम करम करने वाले अपने आप से अपना परलोक सुधारने के लिए कुछ न कुछ डाल जाते थे। शामू को वह इस शहर में अपनी दादी के साथ स्कूल के पास एक मड़ैया मे रखता था। वहाँ पर और भी मड़इयाँ थी जहाँ और लोग बरसो से रहते थे। शामू स्कूल के बच्चों को देखता तो उसका बहुत मन करता था की वह भी स्कूल में जा कर पढ़े, पर उसके बस में कहाँ था यह सब।
दस साल का शामू, अपने टोले में रहने वाले कुछ बच्चों के साथ कूड़े में से प्लास्टिक बटोरने का काम करता था। सबेरे सबेरे यह काम और लड़कों के साथ मिल कर करता था। फिर पुरानी प्लास्टिक की थैलियाँ पुराना टूटा प्लास्टिक बटोर कर अपनी बस्ती के अंदर के एक और लड़के को देता था। वह लड़का चंदू उसका क्या करता है उसे नहीं मालूम पर यह मालूम है कि वह शामू को कभी डबलरोटी कभी समोसा आदि खाने को दे देता है। चंदू भी वह कचड़ा प्लास्टिक किसी न किसी को बेचता जरूर होगा।
शामू का पिता बिहारी हमेशा इतवार को शामू के पास आता था। जब उस कस्बे के आफिस बंद होते थे लोगों की आमद रफ्त भी कम होती थी। भीख मांगना तो इस शहर में भी हो सकता था। लेकिन उसके एक दोस्त ने उसे ज्यादा आमदनी वाली वह जगह सुझाई थी तब से वह हमेशा वहीँ बैठता था। इतवार को उसका आना होता था तब वह घर का खाने का दाल चावल आटा कुछ सब्जी , नमक तेल इत्यादि खरीद रख कर सोमवार को सबेरे सबेरे चला जाता था । शामू दादी के साथ बरसों से रह रहा था । पिता के साथ वह महीने के एक सप्ताह को, दो दिन, बिताता था । तब उसका पिता अपने बदन पर उसको चलवाता था । बिहारी एक दिन शामू से बोला, बेटा तू स्कूल के एकदम पास मे रहता है, कुछ पढ़लिख जाता तो कितना अच्छा होता । इस पर शामू बोला, चल तू स्कूल चल, वहाँ मास्टर को बोल दे । मेरा भी मन पढने के लिए कर रहा है ।
बिहारी शामू से बोला ! चल तू अभी चल, मै चलकर मास्टर साहब से, तेरे पढ़ने की बात करता हूँ। शामू उठ खड़ा हुआ और उसने अपने हाथ — मुँह पर पानी की छीटें मारी फिर अपनी फटी और काली पडी कमीज की बाहों मे मुँह पोंछकर अपने पिता से बोला चलो ! आज से समोसा कचौड़ी बन्द पढ़ाई शुरू । वह अवसर नहीं खोना चाहता था । पिता ने अभी हाँ की है । कल वह पलट जाये तो फिर वह पढ़ने के लिए कब जा पायेगा पता नही । बिहारी भी एक झोंके मे उठा और शामू का हाथ पकड़कर शामू को स्कूल लेकर गया ।
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शरद कुमार श्रीवास्तव
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