आसमान में उड़ी पतंगें,
लगती तारों सी,
रंग बिरंगे गुलदस्तों की,
सजी कतारों सी।
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आपस में स्पर्धा रखती,
ऊपर जाने की,
ऊंची गर्दन करके नभ में,
धाक जमाने की,
फर्राटे के साथ निकलती,
ध्वनि हुंकारों सी।
निष्ठाओं के साथ कसी हैं,
गांठें धागों की,
विश्वासों के साथ बंधी है,
डोर इरादों की,
हाथों की उंगली पर नाचे,
नए इशारों सी।
इसे पतंगी रूप मिला है,
खप्पच तानों से,
नाप तोल कर बांधी जाती,
डोर। कमानों से,
मानव के मन पर छा जाती,
सतत विचारों सी।
डरती नहीं कभी जो अपने,
प्रतिद्वंद्वी से भी,
लातीखुशियां छीनसमयकी,
पाबंदी से भी,
अक्सरछतपरआकरगिरती,
वह उपहारों सी।
कभीजोश में होश न खोना,
सबको चेताती,
सावधान रहने वालों को,
खुशियां दे जाती,
दूर गगन में दिखती जैसे,
धूमिल तारों सी।
आसमान में उड़ी----------
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
19/01/2021
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