माना पशु हैं हम मगर,हम में भी हैं प्राण।
हमें मार इंसानियत,का दे दिया प्रमाण।
हमें जानवर जान कर,किया पेट पर वार।
किन्तु जानवर कौन है,कर लो स्वयं विचार।
एक अजन्में जीव की,सुन लो जरा कराह।
संग तड़प कर मर रहा,मेरा भी शिशु आह!
सजा मौत की है मिली,जो बिल्कुल निर्दोष।
जो था जन्मा ही नहीं, उसका क्या था दोष?
नीचे का कानून यदि,करे भले ही माफ।
👉श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
व्याख्याता-हिन्दी
अशोक उ०मा०विद्यालय,
लहार,भिण्ड,म०प्र०
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