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बुधवार, 16 मार्च 2022

"बचपन की होली" रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"



खूब खेलते मिलकर होली।


बरसाते रंगों की गोली।।


मौज मनाते हम तो प्यारे।


लाल गुलाबी दिखते सारे।।



मम्मी पापा दादा दादी।


देते थे हम को आजादी।।



रंगों से हम खूब नहाते।


इक दूजे को भी नहलाते।।



नहीं समय का कोई बंधन।


खुशियों से जीते थे जीवन।।



यारी दोस्ती खूब निभाते।


साथ बैठ कर खाना खाते।।



कहाँ गयी अब वैसी होली।


फीकी दिखती इसकी गोली।।



नहीं खेलते बच्चे अब के


घर के अंदर रहते छुप के।।






प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


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