शिव शंकर को जो भी पूजे, मन वांछित फल पाते हैं।
औघड़ दानी शिव भोला है, जल्दी खुश हो जाते हैं।।
शिवरात्रि के महापर्व पर, दर्शन करने जाते हैं।
श्रद्धा पूर्वक फूल पान सब, अर्पित कर के आते हैं।।
बाघाम्बर को लपटे रहते, गले नाग की माला है।
अंग भभूत लगाये रहते, कानों बिच्छी बाला है।।
धुनी रमाते पर्वत ऊपर, बैठे वह कैलाशी है।
तीन लोक में विचरण करते, वह तो घट घट वासी है।।
बड़े दयालु भोले बाबा, जो माँगो दे देते हैं।
खुश रहते हैं भक्तों से वह, कभी नहीं कुछ लेते हैं।
महेंद्र देवांगन "माटी"
प्रेषक - सुपुत्री- प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
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